सोमवार, 25 दिसंबर 2023

= ३८ =

*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*कौण पटंतर दीजिये, दूजा नाहीं कोइ ।*
*राम सरीखा राम है, सुमिर्यां ही सुख होइ ॥*
===============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
कौण पटंतर दीजिये, दूजा नाहीं कोय ।
राम सरीखा राम है, सुमिर्यां ही सुख होइ ॥
"कौन पटंतर दीजिए, दूजा नाहीं कोय।"-कैसे उसकी उपमा दें ? कोई दूसरी वैसी घटना नहीं। "राम सरीखा राम है, सुमिर्यां ही सुख होइ ॥" बस, राम सरीखा राम है। मत पूछो, राम कैसा है ? मत पूछो, ईश्वर कैसा है ? मत पूछो, आत्मा कैसी है ? क्योंकि कोई उत्तर दिया नहीं जा सकता।
.
"राम सरीखा राम"--तब फिर एक ही उपाय है: पूछो मत परिभाषा, स्वाद लो। "सुमिर्यां ही सुख होइ ॥" स्वाद लो, सुमिरण करो। यह मत पूछो कि परमात्मा कैसा है। इतना ही पूछो, कि परमात्मा कैसे हो सकता है। यह मत पूछो, कि सत्य क्या है; इतना ही पूछो कि मेरी आंख सत्य के लिए कैसे खुल सकती है।
.
क्योंकि बंद आंख वाले आदमी के पास कोई भी अनुभव नहीं है, जिससे सत्य की उपमा दी जा सके। और जो भी उपमा हम देंगे, आखिर में सब झूठी सिद्ध होगी। कोई परिभाषा नहीं हो सकती। परिभाषा का मतलब ही होता है, एक को दूसरे से समझाना। अगर तुम्हारे गांव में गुलाब के फूल नहीं होते, तो भी दूसरे फूल होते हैं।
.
और कोई यात्री अगर गुलाब के फूल की खबर लाए, और तुम पूछो, कैसे ? तो कह सकता है। तुम्हारे गांव के फूलों से तुलना दे सकता है। कहेगा कि इनसे भिन्न होते हैं, लेकिन कोई रास्ता बनाया जा सकता है, कि समझा दे तुम्हें। कम से कम फूल तुम्हारे गांव में भी होते हैं। वह जो फूलने की क्रिया है, वह तुम्हारे गांव में भी घटती है।
.
खिलने की क्रिया तुम्हारे गांव में भी घटती है। लाल फूल भी तुम्हारे गांव में होते हैं। गुलाब के बराबर फूल भी तुम्हारे गांव में होते हैं। कोई सुगंध भी तुम्हारे गांव में खोजी जा सकती है, जो गुलाब की सुगंध की थोड़ी सी झलक दे दे। लेकिन परमात्मा का फूल तो तुम जिस गांव में रहते हो, वहां लगता ही नहीं। वहां उस जैसी कोई घटना ही नहीं घटती।
.
धन से उपमा दे, बड़ी ओछी मालूम पड़ती है; धन तुम्हारा परमात्मा है। पद से उपमा दें, बड़ी ओछी मालूम पड़ती है, पद तुम्हारा परमात्मा है। फिर भी उपमा दी गई है। संतों ने उसे परम पद कहा है। संतों ने उसे परम धन कहा है। करें क्या ? मजबूरी है। धन तुम्हारा परमात्मा है, उससे तुम समझोगे थोड़ा-बहुत। पद तुम्हारा परमात्मा है।
.
निकटतम जो उसके पहुंच सकती है बात, वह भी पहुंच नहीं पाती। वह है, प्रेम इसलिए ईसा ने परमात्मा को प्रेम कहा है। लेकिन वह भी नहीं पहुंच पाती, क्योंकि प्रेम तुम्हारा इतना कीचड़-सना है; क्योंकि उससे डर है, कि तुम कुछ गलत ही समझ जाओ। जीसस ने प्रेम कहा है परमात्मा को। यह नहीं कहा, कि परमात्मा प्रेमी है। यह भी नहीं बताया, किसको प्रेम करता है? कौन प्रेयसी है ? परमात्मा को ही प्रेम कहा है। परमात्मा प्रेम से अलग नहीं है।
.
वह प्रेम की भाव-दशा है। लेकिन भूल होना संभव है, हमेशा संभव है। तुमने प्रेम को जाना है कामवासना की कीचड़ में सना हुआ। तुम्हारे परमात्मा की तस्वीर में भी कीचड़ आ जाएगी। अभी स्वीडन में वे एक फिल्म बना रहे हैं, "सेक्स लाइफ आफ जीसस"--जीसस का काम-जीवन। जो बना रहे हैं, उनका खयाल है कि जब जीसस ने इतना महत्व दिया है प्रेम को; तो जरूर उनका काम-जीवन रहा होगा।
.
कीचड़ आ गई ! तुम सोच ही नहीं सकते कि जीसस का जीवन, कैसा जीवन होगा। स्वाभाविक है, तुम अपने से ही सोच सकते हो। तुम्हारा गणित तुमसे ही शुरू होगा।
इसलिए दादू ठीक ही कहते हैं--
कौन पटंतर दीजिए, दूजा नाहीं कोय ।
राम सरीखा राम है, सुमिर्यां ही सुख होइ ॥
.
इसलिए मत पूछो, कि राम क्या है--इतना ही पूछो, कि उसका स्मरण कैसे करें। बुद्ध ने बार-बार कहा है, मत पूछो सत्य क्या है। इतना ही पूछो, सत्य कैसे पाया जाता है ? विधि पूछो, सत्य मत पूछो। प्रकाश क्या है, यह मत पूछो, इतना ही पूछो कि आंख कैसे खुलती है। प्रकाश तो, तुम्हारी आंख खुलेगी, तभी तुम जान सकोगे।
OSHO

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें