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*दादू पाती प्रेम की, बिरला बांचै कोइ ।*
*बेद पुरान पुस्तक पढै, प्रेम बिना क्या होइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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जिस दिन मैंने विश्विद्यालय की नौकरी छोड़ी उस दिन मैंने सबसे पहला काम काम यह किया कि सहेज कर और संजो कर रखे गये अपने सारे सर्टिफिकेटों और डिप्लोमाओं को आग लगा दी ।
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उनको जलता देख कर मैं इतना खुश हो रहा था कि मेरा सारा परिवार वहां इक्ट्ठा हो गया, उन्होंने सोचा कि अब मैं पूरा पागल हो गया हूं । वे हमेशा ही सोचते थे कि मैं थोड़ा पागल हूं। उनके चेहरे देख कर मैं और अधिक जोर से हंसने लगा ।
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उन्होंने कहा ; ' आखिर हो ही गया ।' मैंने कहा : 'हां, आखिर हो ही गया ।' उन्होंने पूछा; हो ही गया से तुम्हारा क्या मतलब है ?
मैंने कहा : 'जिंदगी भर से मैं इन सर्टिफिकेटों को जलाना चाहता था लेकिन जला नहीं सका, क्योंकि हमेशा उनकी जरूरत पड़ती थी। लेकिन अब इनकी कोई जरूरत नहीं है । अब मैं फिर से उतना ही अशिक्षित हो सकता हूं जितना कि मैं जन्म के समय था ।'
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उन्होंने कहा, 'तुम बिल्कुल बुद्धू हो ! बिल्कुल पागल हो | तुमने इतने मूल्यवान सर्टिफिकेटों को जला दिया ! तुमने सोने के मेडल को भी कुएं में फेंक दिया । अब विश्वविद्यालय में प्रथम आने के प्रमाणपत्र को भी तुमने जला दिया !' मैंने कहा : अब कोई भी उस सारी बकवास के बारे में मुझसे बात नहीं कर सकता ।'
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आज भी मुझमें कोई विशेष गुण या योग्यता नहीं है । मैं हरिप्रसाद जैसा संगीततज्ञ नहीं हूं, न मैं नोबल पुरस्कार विजेताओं जैसा हूं । मैं तो बस कुछ भी नहीं हूं । फिर भी हजारों लोग बिना किसी अपेक्षा के मुझसे प्रेम करते हैं।
🙏🙏🌹🌹🔥🔥ओशो✍
स्वर्णिंम बचपन~सत्र 32

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