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*ज्यों तुम भावै त्यों खुसी, हम राजी उस बात ।*
*दादू के दिल सिदक सौं, भावै दिन को रात ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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तथाकथित साधु-संन्यासी लोगों को समझाते हैं, ईष्या मत करो। एक साधु के व्याख्यान को मैं एक बार सुनने गया। वे समझा रहे थे कि ईष्या मत करो, ईष्या से बड़ा दुख होगा। कभी मत देखो कि तुमसे आगे कौन है। हमेशा देखो कि तुमसे पीछे कौन है। उससे संतोष होगा।
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उनका आप मतलब समझे ? तुम्हारे पास दस हजार रुपये हैं। जिसके पास दस लाख हैं, उस तरफ मत देखो। क्योंकि उसको देखने से पीड़ा उठेगी, सांत्वना टूट जाएगी--कि मेरे पास केवल दस हजार और तेरे पास दस लाख ! संतुलन खो जाएगा, दौड़ पैदा हो जाएगी, वैमनस्य होगा, जलन होगी।
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न; अपने से पीछे देखो, जिसके पास दस हजार भी नहीं हैं, भिखारी है। उसे देख कर बड़ा संतोष आएगा कि कोई हर्जा नहीं, दस हजार तो हैं। इसके पास दस रुपये भी नहीं। इसका मतलब हुआ: अगर तुम कनवे हो, तो अंधे को देखो। उसको मत देखो जिसके पास दो आंखें हैं ! अगर तुम लंगड़े हो, तो जिसके दोनों पैर टूट गए हैं उसको देखो !
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मगर चाहे तुम आगे देखो, चाहे तुम पीछे देखो, सांत्वना में हमेशा ही तुलना मौजूद रहेगी। जिसके पास कम है, उसको देख कर थोड़ी राहत मिलेगी। जिसके पास ज्यादा है, उसको देख कर बेचैनी होगी। और तुम चाहे देखो या न देखो, तुम यह कैसे भूल सकते हो कि तुमसे ज्यादा लोगों के पास है ?
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जब तुम पीछे देखते हो और तुम पाते हो कि तुम्हारे पास दस हजार हैं और दूसरे के पास दस रुपये भी नहीं, और तुम्हें राहत मिलती है, तो इसी राहत में वहर् ईष्या भी छिपी है। तुम कैसे भूल सकोगे कि इस दुनिया में बहुत हैं जिनके पास दस हजार से ज्यादा हैं ? इसी राहत में बेचैनी भी छिपी है। यह तुम अपने को अंधा कर रहे हो। लेकिन तम जागोगे नहीं।
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दादू कहते हैं: साईं सत संतोष दे। तुलना वाला संतोष नहीं-- कि कोई अंधा है तो एक आंख में मजा ले रहे हैं, कि कम से कम एक तो है। नहीं, यह संतोष की कोई जरूरत नहीं। सत संतोष दे ! जो मेरे पास है, उसे मैं बिना तुलना किए भोग सकूं। जैसे मैं अकेला हूं। और तुम जैसा कोई है भी नहीं। तुम हो भी अकेले।
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सब तुलना व्यर्थ है। दूसरे से तौलने में ही भूल है। तौलते ही अहंकार निर्मित होता है। पीछे देखोगे, तो राहत वाला अहंकार; आगे देखोगे, तो बेचैनी वाला अहंकार। पर तुलना से ही अहंकार पैदा होता है। तौलो ही मत। तुम जैसे हो, वहीं परमात्मा के प्रति अहोभाव उठे। तुम्हें जो दिया है, वह किसी तुलना के कारण ज्यादा नहीं, तुम्हारी अपात्रता के कारण अपार है।
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इस फर्क को ठीक से समझ लेना ! किसी की तुलना के कारण ज्यादा नहीं, तुम्हारी अपात्रता के कारण अपार है। जो तुम्हें मिला है, मिलने की कोई योग्यता न थी, कोई कारण न था। तुम शिकायत न कर सकते थे, फिर भी मिला है। उसने लुटाया है, तुम्हें भर दिया है। साईं सत संतोष दे...
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अगर तुम्हें झूठा संतोष चाहिए तो आगे-पीछे देखो। अगर सच्चा संतोष चाहिए तो ऊपर देखो, परमात्मा की तरफ देखो। ..
भाव भगति बेसास। भाव दे। विचार तो बहुत हैं तुम्हारे पास। भक्त भाव मांगता है। भगति दे, प्रेम दे। बेसास। विश्वास दे, आस्था दे। विचार के साथ संदेह है, संदेह के साथ संघर्ष है; वे एक ही शृंखला के सूत्र हैं। भाव के साथ भक्ति है, भक्ति के साथ विश्वास है; वे एक शृंखला के सूत्र हैं।
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हृदय विश्वास जानता है, बुद्धि संदेह जानती है। बुद्धि लड़ती है, संघर्ष करती है, संकल्प करती है। हृदय समर्पण करता है, विश्वास करता है। ... भाव भगति बेसास। पर तुम सोच सकते हो, भाव तो मांगना पड़ेगा। तुम्हारे बस के बाहर है।
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तुम अपने हृदय को खोल दो और प्रतीक्षा करो। उसके मेघ बरसेंगे, तो तुम भाव और भक्ति और विश्वास से भर जाओगे। नहीं बरसेंगे, तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। तुम एक मरुस्थल हो। उसके मेघ आएं, उन्हें पुकारो।
ओशो (सबै सयानै एक मत)

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