शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १९७*

🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*निश्चल करतां जुग गये, चंचल तब ही होहि ।*
*दादू पसरै पलक में, यहु मन मारै मोहि ॥*
================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग नट नारायण १८(गायन समय रात्रि ९-१२)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
१९७ मन दुष्टता । पंजाबी त्रिताल
मेरे मन मति हीन न मानी,
सदगुरु सीख विविध परि१ दीन्ही, प्रकट कही अरु छानी ॥टेक॥
साधु वेद गुरु साखि सुनावत, सुन सठ दीन्ही कानी२ ।
अधम अज्ञान अनीति अंधगति, धर्म मैंड३ सब भानी४ ॥१॥
भांति भांति मन को समझावत, मन हुं लीक लख पानी ।
सोगति५ समझ भई या मन की, कहिये कहा बखानी ॥२॥
नमो नमो हारे मन आगे, कौन कुमति है सानी६ ।
जन रज्जब युग युग या जीव सौं, रह्यो रिंदगी७ ठानी८ ॥३॥५॥
मन की दुष्टता बता रहे हैं -
✦ सदगुरु ने विविध प्रकार से शिक्षा दी है, प्रगट तथा गुप्त रहस्य मय दोनों ही प्रकार की बातें कही हैं परन्तु मेरे मतिहीन मन ने तो उनमे से कुछ भी नहीं मानी हैं ।
✦ संत, वेद और गुरुजन प्रभु संबन्धी साक्षी सुनाते हैं किंतु इस दुष्ट ने तो सुनकर भी अनसुनी२ कर दी है । यह नीच अज्ञानी जैसे अंधा मार्ग छोड़कर चलने लगता है, वैसे ही अनीति में प्रवृत होता है । इसने धर्म की सब मर्यादा३ तोड़४ डाली है ।
✦ मन को नाना भांति से समझाते हैं किंतु इस को समझाना तो मानो जल की लकीर के समान है । जल की लकीर निकालते ही मिट जाती है । वैसे ही ही इस मन समझ की चेष्टा५ है । श्रुत ज्ञान को तत्काल त्याग कर कुमार्ग में जाता है । इस मन के विषय मे व्याख्यान करके क्या कहैं ?
✦ इसके आगे तो बारंबार नमस्कार करते हैं । पता नहीं इसमें कौन सी कुबुद्धि मिली६ हुई है । यह तो प्रति युग में ही जीव के साथ दुष्टता७ करता८ रहा है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें