शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

द्वैताद्वैतविवर्जितम्

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*निकटि निरंजन लाग रहु, जब लग अलख अभेव ।*
*दादू पीवै राम रस, निहकामी निज सेव ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
श्रीरामकृष्ण ईश्वरावेश में बाह्यशून्य हो चित्रवत् बैठे हुए हैं ।
इस प्रेमावेश को, इस अद्भुत दृश्य को देखकर, भक्तों में किसी की आँखों से आँसू बह रहे हैं और कोई स्तुति-पाठ कर रहे हैं । जिसका जैसा भाव है, वह उसी भाव से श्रीरामकृष्ण की ओर हेर रहा है । कोई उन्हें परम भक्त देखता है, कोई साधु, कोई देह धारण करके आये हुए साक्षात् ईश्वरावतार, जिसका जैसा भाव ।
.
महिमाचरण गाने लगे । गाते हुए आँखों में पानी भर आया - 'देखो देखो प्रेममूर्ति ।' और बीच-बीच में इस भाव से श्लोकों की आवृत्ति करने लगे जैसे ब्रह्म का साक्षात् दर्शन कर रहे हों - 'तुरीयं सच्चिदानन्द द्वैताद्वैतविवर्जितम् ।'
.
नवगोपाल रोने लगे । एक दूसरे भक्त भूपति ने गाया ।
गाना - हे परब्रह्म, तुम्हारी जय हो, तुम अपार हो, अगम्य हो, परात्पर हो ..... । मुझे ज्ञान दो, भक्ति और प्रेम दो, और श्रीचरणों में मुझे आश्रय दो ।
.
भूपति फिर गा रहे हैं –
गाना - चिदानन्द-सिन्धु-सलिल में प्रेम और आनन्द की लहरें उठ रही हैं । रासलीला के महान् भाव में कैसी सुन्दर माधुरी है !....
.
बड़ी देर के बाद श्रीरामकृष्ण प्रकृतिस्थ हुए ।
श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - आवेश में न जाने क्या हो जाता है । इस समय लज्जा आ रही है । उस समय जैसे भूत सवार हो जाता है, 'मैं' फिर 'मैं' नहीं रह जाता ।
.
"इस अवस्था के बाद गिनती नहीं गिनी जा सकती । गिनने लगो तो १, ७, ९ इस तरह की गणना होती है ।"
नरेन्द्र - सब एक ही है, इसलिए ।
श्रीरामकृष्ण - नहीं, एक और दो से परे ।
महिमाचरण - जी हाँ, द्वैताद्वैतविवर्जितम् ।
.
श्रीरामकृष्ण - वहाँ तर्क-विचार नष्ट हो जाता है । पाण्डित्य द्वारा उन्हें कोई पा नहीं सकता । वे शास्त्रों, वेदों, पुराणों और तन्त्रों से परे हैं । किसी के हाथ में अगर मैं एक पुस्तक देखता हूँ तो उसके ज्ञानी होने पर भी मैं उसे राजर्षि कहता हूँ । ब्रह्मर्षि का कोई बाह्य लक्षण नहीं रहता । 
.
शास्त्रों का उपयोग क्या है, जानते हो ? एक ने चिट्ठी लिखी थी, उसमें था, पाँच सेर सन्देश और एक धोती भेजना । जिसे वह चिट्ठी मिली उसने पाँच सेर सन्देश और एक धोती, इतना याद करके चिट्ठी फेंक दी । चिट्ठी की क्या जरूरत थी ?
.
विजय - सन्देश भेजे गये, यह समझ लिया !
श्रीरामकृष्ण - ईश्वर आदमी की देह धारण करके आते हैं । यह सच है कि वे सब जगहों में और सर्व भूतों में हैं, परन्तु अवतार के बिना जीवों की आकांक्षा की पूर्ति नहीं होती, उनकी आवश्यकताएँ नहीं मिटती । वह इस तरह कि गौ को चाहे जहाँ छुओ वह गौ को ही छूना हुआ, सींग छूने पर भी गौ को छूना हुआ, परन्तु दूध गौ के थनों से ही आता है । (हास्य)
.
महिमा - दूध की अगर जरूरत हो तो गौ के सींगों में मुँह लगाने से क्या होगा ? उसके थनों में मुँह लगाना चाहिए । (सब हँसते हैं)
विजय - परन्तु बछड़ा पहले पहले इधर-उधर ही हूँथा मारता है ।
श्रीरामकृष्ण – (हँसते हुए) - बछड़े को उस तरह भटकते हुए देखकर कोई कोई ऐसा भी करते हैं कि उसका मुँह थनों में लगा देते हैं । (सब हँसते हैं)
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें