शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

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*दादू मारग कठिन है, जीवित चलै न कोइ ।*
*सोई चलि है बापुरा, जो जीवित मृतक होइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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झेन फकीर हुआ रिंझाई। एक गांव में मेहमान था। एक आदमी से उसने कहा कि मैंने सुना है, तुम्हारे गांव में एक संगीतज्ञ है। एक बांसुरीवादक है, उसके स्वर बड़े अनूठे हैं। कहते हैं कि ऐसे स्वर कभी कृष्ण के थे या यूनान में हुए आफर्यूअस के।
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उस आदमी ने कहा, “छोड़ो बकवास ! वह आदमी क्या बांसुरी बजाएगा ? वह निपट बेईमान और चोर है।”
दूसरे आदमी से भी उसके बाद. . . वह आदमी बैठा ही था, कि दूसरा आदमी आया। रिंझाई ने उससे भी कहा, कि “मैंने सुना है, तुम्हारे गांव में एक चोर है, बेईमान है, बहुत बुरा आदमी है।”
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उस आदमी ने कहा, “मैं समझ गया, तुम किसकी बात कर रहे हो। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, कि वह चोर हो नहीं सकता, वह बेईमान हो नहीं सकता। एक बार उसकी बांसुरी सुन लो, तुम भी विश्वास कर लोगे कि वह चोर हो नहीं सकता; अफवाह है। 
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वह इतनी सुंदर बांसुरी बजाता है, चोर हो कैसे सकता है?” एक ही आदमी ! वह दोनों हो सकता है। चोर भी हो, बेईमान भी हो, बांसुरी भी बजाता हो, कोई अड़चन नहीं है। बांसुरी चोरी में कोई बाधा नहीं डालती। चोरी की कोई अड़चन नहीं है बांसुरी में। उससे कोई प्रयोजन भी नहीं है।
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लेकिन ये दो आदमी हैं। एक आदमी इसलिए नहीं मान सकता कि वह अच्छा बांसुरीवादक है, क्योंकि चोर है। और एक आदमी इसलिए नहीं मान सकता कि वह चोर हो सकता है, क्योंकि वह अच्छा बांसुरीवादक है।
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ये आस्तिक और नास्तिक की दृष्टियां हैं। ये श्रद्धा और संदेह की दृष्टियां हैं।ज्ञानी को समझना हो, तो बड़े भाव और बड़े प्रेम से ही समझा जा सकता है। अन्यथा वह पागल मालूम पड़ेगा। रामकृष्ण के पास जाओ, तो संदेह लेकर मत जाना; महावीर नग्न खड़े हैं। पाजामा ही नहीं गिराते, बिलकुल ही सब गिराकर खड़े हैं–जरूर रुग्ण हैं। कहीं कोई गड़बड़ है।
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महावीर के पास मनोवैज्ञानिक की तरह मत जाना। क्योंकि तुम तब जा ही न सकोगे। ये इतनी महिमा-मंडित स्थितियां हैं, कि इनके पास तुम्हें जाना हो, तो तुम्हें पर्वत-शिखर की यात्रा करनी होगी। और अपनी बुद्धि के सारे बोझ नीचे रख देने होंगे। अन्यथा तुम पर्वत-शिखरों तक जा न सकोगे। 
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फिर तुम जो निर्णय लेकर लौट आओगे, वे तुम्हारे अपने ही निर्णय होंगे। उनका महावीर से कोई संबंध न होगा। ज्ञान इस जगत में सबसे बड़ी पहेली है, अगर तुम्हारी जगह से देखा जाए। असंभव घटता है ज्ञानी में। जो नहीं घटना चाहिए, वह घटता है। 
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तुम्हें भरोसा नहीं आता, ऐसी घटना घटती है। क्योंकि ज्ञानी का अर्थ है, जिसके भीतर परमात्मा घटा। वह असंभव क्रांति है। वह असंभव क्रांति है। उस पर भरोसा आता नहीं। यह हो कैसे सकता है कि किसी में परमात्मा घट जाए ? तुम्हारा मन इनकार करता है। 
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लेकिन उस इनकार से तुम्हीं खोओगे कुछ, ज्ञानी का कुछ भी नहीं खोता है। उस इनकार से तुम ही बंद हो जाओगे। उस इनकार से तुम्हारा ज्ञानी से संबंध निर्मित नहीं हो पाएगा। और उस संबंध के निर्मित होने में तुम्हारी भी क्रांति की संभावना छिपी थी। जो असंभव ज्ञानी के भीतर घटा है, वह तुम्हारे भीतर भी घट सकता है। 
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बीज रूप से तुम भी वही हो। “तत्त्वमसि श्वेतकेतु”–उपनिषद कहते हैं, “तू भी वही है श्वेतकेतु।” लेकिन यह होना तभी संभव है, जब तुम्हें कोई महिमा-मंडित व्यक्ति पर भरोसा आ जाए। वह भरोसा ही तुम्हारे भीतर के बीज को तोड़ेगा, अंकुरित करेगा, तुम भी खुले आकाश में उठोगे। कभी संभावना है, कि तुम्हारे भी फूल खिल सकें।
ओशो

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