सोमवार, 15 जनवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #३८५

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३८५)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३८५. प्रतिताल*
*राम नाम तत काहे न बोलै, रे मन मूढ़ अनत जनि डोलै ॥टेक॥*
*भूला भरमत जन्म गमावै, यहु रस रसना काहै न गावै ॥१॥*
*क्या झक औरै परत जंजालै, वाणी विमल हरि काहे न सँभालै ॥२॥*
*राम विसार जन्म जनि खोवै, जपले जीवन साफल होवै ॥३॥*
*सार सुधा सदा रस पीजे, दादू तन धर लाहा लीजे ॥४॥*
रामनाम ही वास्तविक तत्त्व है । कल्याणकारी साधनों के मध्य में रामनाम ही सर्वश्रेष्ठ साधन हैं । ऐसा जानकर रामनाम का जप किया कर और उसी के यश का गान कर भ्रमवशात् अन्यत्र आसक्त मत हो । अपने मानव जन्म को व्यर्थ में ही मत गमावो । रामनाम ही सबसे उत्तम रस है । अतः अपनी रसना से उसका पान कर । व्यर्थ परिश्रम करके काल के जाल में क्यों फंस रहा है ।
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सत्पुरुषों के उपदेश को सुनकर हरिस्मरण क्यों नहीं करता । राम को भूलकर मनुष्य जन्म को व्यर्थ में ही क्यों खो रहा है । अपने जीवन को सफल बनाना चाहता है तो राम नाम का स्मरण कर । सर्वसाधनों का सारभूत जो रामनाम का स्मरणरूपी अमृत है उसका यथेच्छ पान कर । यह ही मानव जन्म का महान् लाभ है, जो हरिभजन से मिलता हैं ।
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श्रीमद्भागवत में कहा है कि –
जब समस्त पापों के नाशक उनके परम मंगलमय गुण कर्म और जन्म की लीलाओं से युक्त होकर वाणी उनका गान करती हैं तब उस गान से संसार में जीवन की स्फूर्ति होने लगती हैं । शोभा का संचार हो जाता है । सारी अपवित्राएं धुल कर पवित्रता का साम्राज्य छा जाता है । परन्तु जिसकी वाणी से उनके गुणलीला और जन्म की कथाएं नहीं गाई जाती वह तो मुर्दे को ही शोभित करने वाली है । होने पर भी नहीं होने के समान हैं ।
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नामस्मरण करते ही भगवान् ज्यों ही साधक के हृदय में विराजते हैं त्योंही उसके समस्त दोषों को नष्ट कर देते हैं । जिस प्रकार ऊंची ऊंची लपट वाला अग्नि वायु के साथ मिलकर सूखी घास के ढेर को जला डालता है । उसी प्रकार योगियों के चित्त में स्थित विष्णु भगवान् उनके सारे पापों को जला डालते हैं ।
(क्रमशः)

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