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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १०९/११२*
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कहि जगजीवन रांमजी, जीव बह्या६ बिन ग्यांन ।
अलख नांम अबिगत कथा, हरिगुन किया न कांन७ ॥१०९॥
(६. बह्या=नष्ट हुआ) (७. न कांन=बात पर ध्यान न देना, सुनना नहीं)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यह जीव बिना हरिनाम के बहक जाता है यूंही व्यर्थ हो रहा है । क्योंकि इसने प्रभु का न तो नाम स्मरण किया और ना ही प्रभु की कथा महिमा सुनी ।
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मांग कह्यां मांगौं भगति, दीन कह्यां सोइ देहु ।
कहि जगजीवन रांमजी, अब हरि आंन न लेहु ॥११०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मांगने को कहे तो भक्ति मांगो जो ये गरीब कहता है वह भक्ति ही दीजिये । कहते हैं कि हे प्रभु अब और कुछ नहीं चाहिए आपकी भक्ति के सिवा ।
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कहि जगजीवन रांमजी, मेटौ आंन सुभाव ।
महरवान८ हरि महर करि, आप क्रिपा करि आव ॥१११॥
(८. महरवान=दयालु)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आप दया करके हमारे स्वभाव के दोष दूर करो । और दया करके आप अपनी कृपा हम पर बनाये रखें ।
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रांम मिलन की रांम गति, रांम बतावै तोहि ।
नाक घिसनियां९ हाहड़ा१०, जगजीवन करू मोहि ॥११२॥
(९. नाक घिसनियां=नाक रगड़ने वाला) (१०. हाहड़ा=रोने कलपने वाला)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु, प्रभु कैसे मिले ये विधि भी प्रभु ही बताते हैं आप मुझे अपने दर पर नाक रगड़ने व विरह में रोनेवाला करदें मेरा अहंकार न रहे ।
(क्रमशः)

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