सोमवार, 15 जनवरी 2024

कहिं की साषि सबद्द कहीं का

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू टोटा दालिदी, लाखों का व्यौपार ।*
*पैका नांही गांठड़ी, सिरै साहूकार ॥*
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*चांणक कौ अंग ॥*
कहिं की साषि सबद्द कहीं का, भोग कहीं का लाया ।
बषनां कह वै साध नहीं रे, सात मूत का जाया ॥१६॥
बषनांजी कहते हैं, वे आत्मसाक्षात्कारी साधु नहीं अपितु सात = अनेकों पिताओं की जारज संतान हैं जो किसी की साषी और किसी अन्य का पद चुराकर उनमें अपने नाम की भणिता(छाप) लगाकर अपने शिष्यों/श्रोताओं को सुनाते हैं । साखि = साषी छंद । सबद्द = पद । भोग = छाप, भणिता, छंद निर्माता का नाम । सात मूत = अनेक पिताओं के शुक्र से जिसकी उत्पत्ति हुई हो ।
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यहाँ ऐसे बंचकों से तात्पर्य है जिन स्वयं में तो कवित्व शक्ति होती नहीं है किन्तु अपने शिष्यों/श्रोताओं के समक्ष अपने आपको अनुभवी = आत्मसाक्षात्कारी सिद्ध करने के लिये अन्य अनेकों संत-महात्माओं की साषी व पदों में से उनकी भणिता निकालकर उस स्थान पर अपनी छाप लगाकर अपने शिष्यों को सुनाते रहते हैं । लोगों को ठगते रहते हैं ॥१॥
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नैंक जनाँ के चोटी चौंडा डाढी तुरक पिछानि ।
दोऊ नहीं बाजिंद कै, कहा दिखावौ आनि ॥२॥
नैंक जनाँ = अनेक हिन्दू लोग चोटी, चौंडा = शिखा रखकर अपनी पहचान निश्चित करते हैं तो तुरक = मुसलमान डाढ़ी के द्वारा अपनी पहचान पक्की करते हैं । बाजिंद = धूर्त, ढोंगी लोगों के दोनों ही नहीं होती । बताइये वे किसे क्या दिखाएँ ?
वस्तुतः जिन ढोंगियों की साषी क्रमांक एक में चर्चा की गई है, उन्हीं की चर्चा यहाँ भी है । ठग लोग हिन्दुओं में हिन्दू तथा मुसलमान में मुसलमान बनकर अपना उल्लु सीधा करते रहते हैं । उन्हें धर्म से और न मजहब से कोई लगाव है । उन्हें तो अपना स्वार्थ सिद्ध करने से गरज होती है । चोटी-चौंडा एक ही शब्द है जैसे बोलचाल में पानी-पानी कहते हैं । चौंडा = चूड़ा = शिखा ॥२॥
(क्रमशः)

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