सोमवार, 15 जनवरी 2024

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २०३*

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*रे मन ! गोविन्द गाइ रे गाइ,*
*जन्म अविरथा जाइ रे जाइ ॥*
*ऐसा जनम न बारम्बारा,*
*तातैं जप ले राम पियारा ॥*
*यहु तन ऐसा बहुरि न पावै,*
*तातैं गोविन्द काहे न गावै ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. २१८)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग जैतश्री १९(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२०३ भक्ति प्रेरणा । एक ताल
गोविन्द राखि सकल नाखि,
सदगुरु की श्रवणधारि, वेद हु विलोकी चारि ।
पंचन को पटकि मारि, सब संत की साखि ॥टेक॥
ऐसा कछु१ और नांहि, सेवा सम जगत मांहि,
जासों अघ दोष जांहि, निशि दिन सो भाखि ।
जप ले जीव जगत मौर, अंतर गत अगम ठौर,
आतुर२ दिन रैन दौर, पहले ही पाखि३ ॥१॥
चरण कमल बाँध नेह, जीवन धन सुमरि लेह,
सुत दारा त्यागि गेह, अमृत रस चाखि ।
रज्जब भज भानि४ भोल५, भक्ति रूप आनि६ मोल,
दीजे मन नंग७ खोल, सौंधी शिर लागि ॥२॥३॥
भगवत भक्ति करने की प्रेरणा कर रहे हैं -
✦ संपूर्ण वासनाओं को हृदय से दूर डालकर एक गोविन्द का चिंतन ही रख, यह सदगुरु की शिक्षा श्रवण करके धारण कर । चारों वेदों को भी देख, वे भी यही कहते हैं, पांचों ज्ञानेन्द्रियोंको जीत कर भगवान के स्वरूप में रख, यही संतों की साक्षी है ।
✦ जगत में ऐसा विलक्षण१ साधन और नहीं है जो भक्ति के समान हो सके । जिस प्रभु के नाम के बोलने से पाप दोष नष्ट हो जाते हैं, उसी नाम को व्याकुलता२ से रात्रि दिन बोल ।
✦ अरे जीव ! भोग वासनाओं से दौड़ कर पहले ही पक्ष३ अर्थात युवावस्था में ही पुत्र, नारी और घर का प्रेम त्याग कर प्रभु के चरणकमलों में स्नेह, कर अपने हृदय धन प्रभु का स्मरण करते हुये भजनामृत रस का आस्वादन कर, भोले५पन को नष्ट४ करके भजन कर । विषयावासना रूप गांठ से मनरूप नग७ को खोलकर अर्थात विषय वासना से अलग कर और प्रभु को देकर के भक्ति का स्वरूप मोल ले६ । अहंकार रूप शिर देने से तो भक्ति सस्ती ही मिल जाती है ।
(क्रमशः)

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