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*बाहर दादू भेष बिन, भीतर वस्तु अगाध ।*
*सो ले हिरदै राखिये, दादू सन्मुख साध ॥६॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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फिर श्रीरामकृष्णदेव की बात चली ।
डाक्टर - देखता हूँ, ये (श्रीरामकृष्णदेव) काली के उपासक हैं ।
मास्टर - उनका काली का अर्थ और कुछ है । वेद जिन्हें परब्रह्म कहते हैं, वे उन्हें ही काली कहते हैं । मुसलमान जिन्हें अल्ला कहते हैं, ईसाई जिन्हें गॉड (God) कहते हैं, उन्हें ही वे काली कहते हैं ।
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वे बहुतसे ईश्वर नहीं देखते, एक देखते हैं । पुराने ब्रह्मज्ञानी जिन्हें ब्रह्म कह गये हैं, योगी जिन्हें आत्मा कहते हैं, भक्त जिन्हें भगवान कहते हैं, श्रीरामकृष्णदेव उन्हीं को काली कहते हैं ।
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"उनसे मैंने सुना है, एक आदमी के पास एक गमला था, उसमें रंग घोला हुआ था । किसी को अगर कपड़ा रँगाने की जरूरत होती थी, तो वह उसके पास जाता था । रँगनेवाला पूछता था, ‘तुम किस रंग में कपड़ा रँगाना चाहते हो ?’ रँगानेवाला अगर कहता, 'हरे रंग में', तो वह गमले में डुबाकर कपड़ा निकाल लेता और कहता था, 'यह लो अपना हरे रंग का कपड़ा ।'
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अगर कोई कहता, 'मेरी धोती लाल रंग से रँगों', तो भी यह उसी गमले में डुबाकर निकाल लेता और कहता था, 'यह लो तुम्हारी धोती लाल रंग से रँग गयी ।' इस एक ही गमले के रंग से वह लाल, पीला, हरा, आसमानी, सब रंगों के कपड़े रँगा करता था ।
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यह विचित्र तमाशा देखकर एक ने कहा, 'भाई, मुझे तो वही रंग चाहिए जो तुमने इस गमले में घोल रखा है ।' उसी तरह श्रीरामकृष्णदेव के भीतर सब भाव हैं, - सब धर्मों और सब सम्प्रदायों के आदमी उनके पास शान्ति और आनन्द पाते हैं । उनका खास भाव क्या है, वे कितने गहरे हैं, यह भला कौन समझ सकता है ?"
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डाक्टर - 'सब मनुष्यों के लिए सब चीजें ।' यह मुझे अच्छा नहीं लगता, यद्यपि सेन्ट पॉल ऐसा ही कहते हैं ।
मास्टर - श्रीरामकृष्णदेव की अवस्था कौन समझेगा ? उनके श्रीमुख से मैंने सुना है, सूत का व्यवसाय बिना किये, कौन सूत ४० नम्बर का है और कौन ४१ नम्बर का, यह समझ में नहीं आता । चित्रकार हुए बिना चित्रकार की कुशलता समझ में नहीं आती ।
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महापुरुषों का भाव गम्भीर होता है । ईशु की तरह बिना हुए, ईशु के सारे भाव समझ में नहीं आते । श्रीरामकृष्णदेव का यह गम्भीर भाव, बहुत सम्भव है, वही है जो ईशु ने कहा था - 'अपने स्वर्गस्थ पिता की तरह पवित्र होओ ।'
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डाक्टर - अच्छा, उनकी बीमारी में तुम लोग किस तरह उनकी सेवा और देखभाल करते हो ?
मास्टर - जिनकी उम्र अधिक है, सेवा करने का भार उन्हीं पर रहता है । किसी दिन गिरीशबाबू परिदर्शक रहते हैं, किसी दिन रामबाबू, किसी दिन बलराम, किसी दिन सुरेशबाबू, किसी दिन नवगोपाल, और किसी दिन कालीबाबू, इस तरह ।
(क्रमशः)

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