रविवार, 21 जनवरी 2024

*निम्बादित्य के पाट*

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*दादू शब्द विचार करि, लागि रहे मन लाइ ।*
*ज्ञान गहै गुरुदेव का, दादू सहज समाइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*छप्पय-*
*निम्बादित्य के पाट, महन्त १ भूरी भट भारी ।*
*भूरी भट घट परसि, कला २ माधव भट धारी ॥*
*३ श्याम ४ राम ५ गोपाल, बहुरि ६ बलभद्र भद्रकर ।*
*७ गोपीनाथ ८ केशव जु, सातु के ९ गंगल भटवर ॥*
*१० कसमीरी केशव जु, जासु के ११ श्रीभट भइयो ।*
*श्रीभट के १२ हरिव्यास, देवि को मनहर लड्यो ॥*
*१३ गुपाल १४ शोभू १५ परशुराम, जन बोहिथ १६ हृषीकेश ।*
*राघव दीरघ्र शिष इते, अरु सेवक सब देश ॥२७५॥*
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श्रीनिम्बार्कजी की गद्दी पर महान् महन्त १. भूरिभट्टजी विराजे थे । भूरिभट्टजी के अन्तःकरण के विचारों वा शरीर का स्पर्श करके २. माधवभट्टजी ने भगवद्भक्ति रूप परम कला अपने अन्तःकरण में धारण की थी ।
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पश्चात् ३. श्यामजी, ४. रामजी, ५. गोपालजी और सबका कल्याण करने वाले ६. बलभद्रजी, ७. गोपीनाथजी, ८. केशवजी, ९. उनके श्रेष्ठ भट्टगंगलजी फिर ...
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१०. काश्मीरी केशवभट्टजी उनके ११. श्रीभट्टजी, श्रीभट्टजी के १२. हरिव्यासजी, जिनने अपने संतत्व के प्रभाव से एक देवी का मन हर के उस से हिंसा छुड़ाई थी । हरिव्यासजी के १२ शिष्य हुये हैं उनमें .....
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१३. लपरा गोपालजी १४. सोभूरामजी १५. परशुरामजी १६. हृषीकेशजी ये भक्त जहाज रूप हुए हैं । तथा घमंडीजी आदि इतने तो महान् माने गये हैं और आपके सेवक सभी देश में थे ॥
(क्रमशः)

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