रविवार, 21 जनवरी 2024

*३९. बिनती कौ अंग १२१/१२४*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १२१/१२४*
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कहि जगजीवन रांमजी, जे कहिये गुन गीत ।
तुम थैं प्रगट सकल है, तुम ही राखौं चीत ॥१२१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हम आपकी जो महिमा गायें वह आप जानते हो सब  कुछ अपने मन मे रखें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, परगट कीजै नांम ।
सकल सुणैं सुनि ऊधरै, सरि आवै सब कांम ॥१२२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप अपना नाम स्मरण दीजिए सब उसे सुनें व सबका उद्धार हो और सबके सब काम पूर्ण हो ।
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कहि जगजीवन रांमजी, नौ खंड प्रिथिवी मांहि ।
भगति तुम्हारी एक रस, हरिजन भूलै नांहि ॥१२३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आपकी भक्ति पृथ्वी के नो खण्ड में स्थित है, इसे कभी भी प्रभु के प्यारे भक्त न भूलें ।
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महारवान११ दीदार१२ द्यौ, जन की विपति निवार ।
कहि जगजीवन रांमजी, मोहि अपना करि लेउ ॥१२४॥
(११. महारवान=दयालु)    (१२. दीदार=दर्शन)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे कृपालु दया दया करके दर्शन दीजिये और मेरा संकट दूर कीजिए । और मुझे अपना बना लीजिए ।
(क्रमशः)

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