गुरुवार, 25 जनवरी 2024

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*सब ही मृतक देखिये, किहिं विधि जीवैं जीव ।*
*साधु सुधारस आणि करि, दादू बरसे पीव ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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यह तो बचपन की पहली घटना मलूक दास के संबंध में ज्ञात है कि वे कूड़ा कचरा रास्‍तों से साफ कर देते थे। और एक सद्गुरू ने कहा था उनके पिता को कि घबडाओं मत चिंतित मत होओ तुम्‍हारे घर ज्योति उतरी है; यह बहुतों के जीवन के कूड़ा कचरा दूर करेगा। यह तो केवल बाहर की सूचना दे रहा है। अभी यह प्रतीक वत है।
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दूसरी घटना बचपन के संबंध में—जो रोज-रोज घटती थी, जिससे मां बाप परेशान हो गये थे। वह थी: साधु सत्‍संग। कोई आ जाये साधु कोई आ जाये संत, फिर मलूक दास घर की सुध-बुध भूल जाते। दिनों बीत जाते, घर न लोटते, साधु-संग में लग जाते। घर में जो भी होता साधुओं को दे आते।
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साधुओं को तो बहुत लोगों ने दिया है। लेकिन जिस ढंग से मलूक दास ने दिया है वैसा किसी ने शायद ही दिया हो। चोरी करके देते। मां-पिता आज्ञा न दें तो घर में से ही चोरी करके, जब रात सब सोये होते, अपने ही घर की चीजें चुराकर साधुओं को दे आते। क्‍योंकि कोई साधु है जिसके पास कम्‍बल नहीं है और सर्दी लगी है उसे और कोई साधु है जिसके पास छाता नही है और वर्षा सिर पर खड़ी है। तो चोरी करके भी बांटते।
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कभी-कभी चोरी भी पुण्‍य हो सकती है। इसीलिए तुमसे कहाता हूं: कृत्‍य नहीं होते पाप और पुण्‍य—कृत्‍यों के पीछे छिपे हुए अभी प्राय। कभी पुण्‍य भी पाप हो सकता है। कभी पाप भी पूण्‍य हो सकता है। जीवन का गणित पहेली जैसा है। सीधी रेखा नही है। जीवन के गणित की कोई नहीं का सकता कि यह ठीक और ऐसा करोगे तो गलत सब कुछ निर्भर करता भीतर की अभीप्‍सा पर।
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चोरी को कौन पुण्‍य कहेगा। अब मूलक दास की चोरी को मैं कैसे पाप कहूं। मूलक दास की चोरी काक पान नहीं कहा जा सकता। और तुम चोरी भी न करो तो भी क्‍या पुण्‍य हो रहा है। तुम दान भी देते हो तो पाप हो जाता है; क्‍योंकि मंदिर के द्वार पर भी तुम अपना पत्‍थर लगवा देते हो।
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कुछ चमत्‍कारों की भी घटनायें बाबा मलूक दास के संबंध में जुड़ी हैं। वैसी घटनाएं करीब-करीब अनेक संतों के साथ जुड़ जाती हैं। उनके जुड़ जाने के पीछे राज है। उनको तथ्‍य मत समझना। तथ्‍य समझा तो भ्रांति हो जाती है। उनको केवल संकेत समझना। वे सांकेतिक हैं।
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जैसे जीसस के संबंध में कथा है कि उन्‍होंने लजारस को मुर्दे से जिला दिया। वापस बुला लिया। वैसी ही कहानी मलूक दास के संबंध में है कि अपने एक शिष्‍य को उन्‍होंने मौत की दुनिया से वापिस बुला लिया था। मूलक दास ने किसी शिष्‍य को, मर गया था और जिन्‍दा कर लिया। फिर मलूक दास कहां हैं ? वे भी मर गये।
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खुद मरते वक्‍त याद न रही अपनी कला, अपना चमत्‍कार, नहीं ये ऐतिहासिक तथ्‍य नहीं है। और जो उनको ऐतिहासिक तथ्‍य मानते है वे बहुत भंयकर भूल कर रहे है। चाहे वे सोचते हों कि हम भक्‍त है, लेकिन वे भक्‍त नहीं हैं। वे हानि पहुंचाते हैं। इसी तरह की बातों के कारण धर्म असत्‍य मालूम होने लगता है। धर्म के साथ अगर तुम इस तरह की बातें जोड़ दोगे, तो ये बातें असत्‍य हैं, इनके साथ धर्म की नाव भी डूब जायेगी। असत्‍य के साथ धर्म को मत जोड़ना।

लेकिन इस तरह की कहानियों में सार बहुत है। सद्गुरू तुम्‍हें पुकारता है तुम्‍हारी कब्र से—उठो, जागों वह पुकारता है। उसकी पुकार अगर तुम सुन लो तो तुम्‍हारी बहरापन खो जाये। उसका स्‍पर्श तुम अनुभव कर लो तो तुम्‍हारी बंध आंखें खुल जाये। ये सिर्फ प्रतीक है इस बात के कि तुम्‍हारी यह सम्‍भावना है, किसी गुरु के सान्‍निध्‍य में सत्‍य बन सकती है। तुम लंगड़े नहीं हो, तुम जीवन के परम शिखर पर चढ़ने योगय हो।
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शिष्‍य मुर्दा है। सद्गुरू मुद्रों को जगाता है। मगर ये ऐतिहासिक तथ्‍य नहीं है। वे सांकेतिक तथ्‍य है। इनमें बड़ा काव्‍य छिपा है और बड़े रहस्‍य भी ये तथ्‍य नहीं है। तथ्‍य तो दो कोड़ी के होते हैं। सत्‍यों का मूल्‍य होता है। लेकिन सत्‍य को कहें कैसे, हमारी भाषा नपुंसक है सत्‍य प्रगट नहीं कर पाती। कथाएं चुननी पड़ती है। उँगली उठानी पड़ती है चाँदकी तरफ पर हम ना समझ ऊंगली को ही पकड़ लेते हैं। चाँद को भूल ही जाते हैं।
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ओशो(राम दुवारे जो मरे)
प्रवचन पहला, 11नवम्‍बर 1979;
श्री रजनीश आश्रम; पूना

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