बुधवार, 3 जनवरी 2024

*भक्ति धर्म कहि मुख्य*


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*कोटि वर्ष क्या जीवना, अमर भये क्या होइ ।*
*प्रेम भक्ति रस राम बिन, का दादू जीवन सोइ ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*विष्णुपुरीजी-*
*छप्पय-*
*भागवत अब्धि के रतन जे, विष्णुपुरी संग्रह किया ।*
*भक्ति धर्म कहि मुख्य, आन धर्म गौण बताया ।*
*कहँ पीतल कहँ हेम, निषक परि कस जब आया ॥*
*सुमन प्रेम फल संग, बेलि हरि कृपा दिखाई ।*
*सकल ग्रंथ करि मथन, रतन आवली बनाई ॥*
*राघव तेरह विरचन में, द्वादश स्कंद दिखाविया ।*
*भागवत अब्धि के रतन जे, विष्णुपुरी संग्रह किया ॥२७१॥*
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श्रीमद्भागवत रूप समुद्र के जो भक्तिसम्बन्धी श्रेष्ठ रत्नरूप वचन थे उनको विष्णुपुरीजी ने संग्रह किया है । आपने भक्ति धर्म को ही मुख्य धर्म कहा है, अन्य धर्मों को गौण बताया है । पीतल और सोने का रंग एक समान दिखाई देता है किन्तु जब कसौटी पर कसा जाता है तब अनायास ही ज्ञात हो जाता है कि यह पीतल है और यह सोना है । फिर पीतल और सोने की समता कहाँ रहती है ?
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वैसे ही विचार द्वारा परीक्षा करने पर भक्ति धर्म के समान अन्य धर्म नहीं हो सकते । आपने श्रीकृष्णकृपा को बेलि रूप बताया है । उस बेलि के पुष्प प्रभु-प्रेम और सत्संग को फल बताया है । आपने सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत ग्रंथ का मन्थन करके "श्रीभक्तिरत्नावली" ग्रंथ की रचना की है । इस ग्रन्थ में तेरह विचरन(प्रकरण) में श्रीमद्भागवत के बारह स्कंधों के पाँच सौ श्लोक रूप रत्न गूंथे गये हैं ॥२७१॥
(क्रमशः)

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