🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*३९. बिनती कौ अंग ९३/९६*
.
जगजीवन पूछै हरि, समरथ साहिब तोहि ।
ए सब रचनां क्यूं रची, कहि समझावौ मोहि ? ॥९३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु हम आपसे पूछते हैं कि आपने यह सब संसारिक रचना क्यों रची हमें समझा कर कहो ।
.
कहि जगजीवन रांमजी, जीव अबूझ१ अयांन२ ।
मिहर मया हरि हेत करि, संगति होइ सयांन३ ॥९४॥
१. अबूझ-अबोध । २. अयांन-अज्ञानी (नासमझ) ।
३. सयांन-ज्ञानी (समझदार) ।
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हम अज्ञानी व अबोध है ।
आप कृपाकरके आप हमें प्रेमपूर्वक सानिध्य दें आप ही ज्ञानी है ।
.
कहि जगजीवन रांमजी, जीव बाहुडै४ जोति ।
अबिगत आप लखाइ हरि, समेटौ नैन की छोति ॥९५॥
४. बाहुड़ै-पुनः उस की ओर लौटे ।
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीव में ज्योति आपकी कृपा से ही लौटती है । आप ब्रह्म दर्शन करवा कर इन नैत्रों को बचा लिजिए ।
.
कहि जगजीवन देह हरि, पलट तेज की होइ ।
मति बुधि सोइ उपाय रस, रांम लखावौ मोहि ॥९६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यह देह पलटकर ब्रह्ममय तेज की हो जाये आप मति बुद्धि द्वारा कोइ ऐसा उपाय कर हमें भी वह दिखा दीजिये ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें