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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३९०)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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**३९०. समर्थाई । प्रतिपाल*
*ऐसो अलख अनंत अपारा, तीन लोक जाको विस्तारा ॥टेक॥*
*निर्मल सदा सहज घर रहै, ताको पार न कोई लहै ।*
*निर्गुण निकट सब रह्यो समाइ, निश्चल सदा न आवै जाइ ॥१॥*
*अविनाशी है अपरंपार, आदि अनंत रहै निरधार ।*
*पावन सदा निरंतर आप, कला अतीत लिप्त नहिं पाप ॥२॥*
*समर्थ सोई सकल भरपूर, बाहर भीतर नेड़ा न दूर ।*
*अकल आप कलै नहीं कोई, सब घट रह्यो निरंजन होई ॥३॥*
*अवरण आपै अजर अलेख, अगम अगाध रूप नहिं रेख ।*
*अविगत की गति लखी न जाइ, दादू दीन ताहि चित्त लाइ ॥४॥*
श्री महर्षि दादूजी महाराज ईश्वरस्वरूप तथा उसका सामर्थ्य बतला रहे हैं कि त्रिभुवन को बनाने वाले विराड्स्वरूप, अनन्त, अपार, इन्द्रियातीत प्रभु का अव्यक्त जो वास्तविक स्वरूप है, उसको कोई नहीं जान सकता ।
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जो हृदयाकाश में स्वाभाविक रूप से विराजते हैं, वेअपार प्रभु निर्गुण स्वरूप सबके पास में, सबके अन्दर निश्चल रूप से विराजते हैं । व्यापक होने से उनमें गमन-आगमन आकाश की तरह नहीं हो सकता । सृष्टि के आदि और अन्त में वे ही प्रभु पारावार रहित विराजते हैं ।
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वह प्रभु सर्वदा पवित्र कालातीत पापपुण्य से रहित सर्वसमर्थ बाहर और भीतर एकरस से सबके पास हैं । अज्ञानियों के लिये बहुत दूर हैं । निराकार मायातीत सबके हृदयकमल में निश्चितरूप से रहते हैं । व्यापक होने से वे आते जाते नहीं । उनका कोई एक रूप नहीं है । जरा आदि शारीरिक धर्म से रहित अगम अगाध मन वाणी के अविषय असीम है । उनका सामर्थ्य अपार हैं । मैं तो दीनभाव से उन्हीं की सेवा में संलग्न रहता हूँ ।
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छान्दोग्य में लिखा है कि –
ब्रह्माजी ने कहा कि जो आत्मा है, वह पापों से सर्वथा अलिप्त हैं । न कभी बूढा होता है, न जन्मता मरता है । शोक चिन्ता से विमुक्त भूख प्यास से रहित सत्यकाम सत्यसंकल्प है । जिज्ञासु जनों को उसको ही जानना, खोजना चाहिये । उसको जानने वाला आत्मज्ञानी सभी लोकों को प्राप्त कर लेता है । उसकी सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं । गुरुमुख से सुनकर जो अधिकारी उसका निश्चय कर लेता है वह कृतकृत्य हो जाता है ।
(क्रमशः)
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