🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*दादू कहतां कहतां दिन गये, सुनतां सुनतां जाइ ।*
*दादू ऐसा को नहीं, कहि सुनि राम समाइ ॥*
=============
*लखौटिया ग्यान कौ अंग ॥*
बषनां लोग कौ चालिबौ, डागुल की सी दौड़ ।
भौंण कुवा परि नित चलै, अंति ठौड़ की ठौड़ ॥१॥
बषनां जी कहते हैं, शास्त्राभ्यासी पंडितों का ज्ञान ठीक उसी तरह छिछला = अधूरा = सीमित होता है जिस प्रकार लोग = लोक = संसारियों का डागुल = छत पर दौड़ना = अत्यन्त सीमित दूरी में दौड़ना होता है ।
.
अन्य उदाहरण से कथन को पुनः स्पष्ट करते हैं जैसे कुवे पर नित्यप्रति चलने वाला भौंण = चाक (चक्र, जिस पर रस्सी चढ़ा कर कुवे से पानी निकाला जाता है) सारे दिन घूमता है किन्तु अंत में जब वह रुकता है तब उसी स्थान पर रुकता है जहाँ से वह प्रारम्भ होता है ।
.
कहने का आशय यह है कि जिस प्रकार चाक का रात दिन घूमना न घूमना के बराबर है, ऐसे ही शास्त्राभ्यासी पंडितों का शास्त्रीयज्ञान आत्मज्ञान कराने में कतई लाभकारी नहीं है यदि उसका चिंतन-मनन व निदिध्यासन न किया जाए ॥१॥
इति फोकट करणी कौ अंग सम्पूर्ण ॥अंग ६५॥साषी १२१॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें