बुधवार, 31 जनवरी 2024

*३९. बिनती कौ अंग १३३/१३६*

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*३९. बिनती कौ अंग १३३/१३६*
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कहि जगजीवन जीव का, (जो) ओगण देख्या रांम ।
(तो) पांव धरन इस धरा पर, तीन लोक नहीं ठांम ॥१३३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु यदि आप जीव के अवगुण देखने लगेंगे तो हमें पांव रखने भर को भी जगह न मिलेगी धरती हो या फिर तीनों लोक हो । अतः प्रभु जी आप हमारे अवगुणों पर ध्यान न दे ।
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जे हरि बकस्या मिहर करि, नांउ दिया षत छेकि८ ।
कहि जगजीवन अनंत जुग, जिया जिया जसि एक ॥१३४॥
(८. षत छेकि=माफीनामा लिख कर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यदि आप क्षमा कर फिर अपना नाम इस सेवक को दे दे तो यह ही क्षमा है । फिर यह सेवक  युग युग तक आपका यश गान करेगा ।
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ओगण अबिगत बकस हरि, अपनां कीजै मोहि ।
कहि जगजीवन रांमजी, नित प्रति निरखूं तोहि ॥१३५॥ 
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मेरे सब अवगुण जानकर भी आप क्षमा कर अपना लें मैं नित्य आपके दर्शन पाता रहूँ ।
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जीवौं सौ हरि जांनिये, जे तुम आवौ भाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, सब सुख दीजै आइ ॥१३६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हम अपने आपको तभी जीवित मानेंगे जब आप आयेंगे । आप आकर हमें सब सुख दीजिये ।
(क्रमशः)

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