बुधवार, 31 जनवरी 2024

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*छह सौ, सहस्र इक्कीस का, अजपा जाप विचार ।*
*यों दादू निज नांव ले, काल पुरुष को मार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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"हम जन्म से मृत्यु के क्षण तक निरंतर श्वांस लेते रहते है। इन दो बिंदुओ के बीच सब कुछ बदल जाता है। सब चीज बदल जाती है, कुछ भी बदले बिना नहीं रहता। लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच श्वांस क्रिया अचल रहती है।"
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शिव उत्‍तर में कहते हैं—हे देवी, यह अनुभव दो श्‍वासों के बीच घटित हो सकता है। श्‍वास के भीतर आने के पश्‍चात और बाहर लौटने के ठीक पूर्व—श्रेयस् है, कल्‍याण है।
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यह विधि है: हे देवी, यह अनुभव दो श्‍वासों के बीच घटित हो सकता है। जब श्‍वास भीतर अथवा नीचे को आती है उसके बाद फिर श्‍वास के लौटने के ठीक पूर्व—श्रेयस् है। इन दो बिंदुओं के बीच होश पुर्ण होने से घटना घटती है।
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जब तुम्‍हारी श्‍वास भीतर आये तो उसका निरीक्षण करो। उसके फिर बाहर या ऊपर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए, या क्षण के हज़ारवें भाग के लिए श्‍वास बंद हो जाती है। श्‍वास भीतर आती है, और वहां एक बिंदु है जहां वह ठहर जाती है। फिर श्‍वास बाहर जाती है। और जब श्‍वास बाहर जाती है। तो वहां एक बिंदु पर ठहर जाती है। और फिर वह भीतर के लौटती है।
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श्‍वास के भीतर या बाहर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम श्‍वास नहीं लेते हो। उसी क्षण में घटना घटनी संभव है। क्‍योंकि जब तुम श्‍वास नहीं लेते हो तो तुम संसार में नहीं होते हो। समझ लो कि जब तुम श्‍वास नहीं लेते हो तब तुम मृत हो; तुम तो हो, लेकिन मृत। लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते।
॥ओशो॥

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