🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३८१)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
===========
*३८१. हरि प्राप्ति दुर्लभ । त्रिताल*
*तहँ मुझ कमीन की कौन चलावै,*
*जाको अजहुँ मुनिजन महल न पावै ॥टेक॥*
*शिव विरंचि नारद यश गावैं, कौन भांति कर निकट बुलावैं ॥१॥*
*देवा सकल तेतीसौं क्रोरि, रहे दरबार ठाड़े कर जोरि ॥२॥*
*सिध साधक रहे ल्यौ लाइ, अजहूँ मोटे महल न पाइ ॥३॥*
*सब तैं नीच मैं नाम न जाना, कहै दादू क्यों मिलै सयाना ॥४॥*
मेरे को हरि की प्राप्ति दुर्लभ प्रतीत होती है । क्योंकि मैं तो अति नीच प्राणी हूँ और मुझ तुच्छ जीव की हरि के पास कोई चर्चा चलाने वाला भी नहीं है । जिसके स्वरूप को मुनिलोग यत्न करके भी प्राप्त नहीं कर सके । सिद्ध और साधक जिसका चिन्तन करते हुए समाधिस्थ हो जाते हैं ।
.
शिव ब्रह्मा नारद आदि निरन्तर गान करने वाले भी उसको प्राप्त नहीं कर सके तो मुझ गरीब की तो क्या बात हैं जो उसको प्राप्त कर सकूं । ऐसे परमात्मदेव स्वयं भी मुझे अपने पास में क्यूं बुलायेंगे । जिनके द्वार पर तैंतीस करोड़ देवी देवता हाथ जोड़कर प्रार्थना करते रहते हैं ।
.
वे भी अभी तक उस विश्व के अधिष्ठान विशाल ब्रह्म को नहीं जान पाये । तो यह तुच्छ जीव उनको कैसे जान सकता हैं । मैं तो उन के नाम का जप भी नहीं जानता । अतः उस परम चतुर परमात्मा का मुझ जैसे साधन हीन प्राणी को दर्शन कैसे हो सकते हैं । अर्थात् अति दुर्लभ हैं ।
.
श्रीभागवत में लिखा हैं कि –
उनकी लीलाओं का जानना अति कठिन हैं । वे नट की तरह अनेक वेशधारण करते हैं । उनके वास्तविक स्वरूप को न तो देवता जानते हैं और न ऋषि ही फिर दुसरा ऐसा कौन प्राणी है जो वहां तक जा सके और उनका वर्णन कर सके । वे प्रभु मेरी रक्षा करे ।
.
जिनके परम मंगलमय स्वरूप का दर्शन करने के लिये महात्मागण संसार की समस्त आसक्तियों को त्याग देते हैं और वन में जाकर अखण्डभाव से ब्रह्मचर्य आदि अलौकिक व्रतों का आचरण करते हैं । तथा अपने आत्मा को सबके हृदय में विराजमान देखकर स्वाभाविक ही भलाई करते हैं । वे ही प्रभु मुनियों के सहायक मेरी गति हैं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें