🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*दादू सम कर देखिये, कुंजर कीट समान ।*
*दादू दुविधा दूर कर, तज आपा अभिमान ॥*
=============
*तरक चिंतावणी कौ अंग ॥*
बषनौं कहै सरावगियाँ सेती । ऐक वीनती मानौं ऐती ॥
धरमी धरम बिचारताँ, मति कोइ मानौं रीस ।
बत्तीसाँ मैं दस रह्या, क्यौं खोया बाईस ॥७॥
श्रावकों से एक निवेदन मान लेने की विनती बषनांजी करते हुए कहते हैं कि आप मेरी एक बात मान लीजिये । हे धर्म को धारण करने वाले धर्मी सज्जनों ! धर्म की यथार्थ समालोचना सुनते समय किसी को भी क्रोध नहीं अकर्ण चाहिये । मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ कि जैनधर्म द्वारा स्वीकृत जैनधर्मी के ३२ लक्षणों में से २२ लक्षणों को आपने क्यों खोकर अपने में मात्र १० लक्षण ही रहने दिये हैं ।
बषनांजी का संकेत यहाँ दिगम्बर जैनों द्वारा स्वीकृत ३२ लक्षणों वाले धर्माचरण की ओर है । दिगम्बर जैनों में से ही जब २२ पंथी जैनों का अलग संप्रदाय निकला; तब उन्होंने कहा, दिगम्बर पूरे ३२ लक्षणों को भूल गये हैं अब हम २२ लक्षणों वाले जैन धर्म को पालेंगे । इसी को लक्ष्य करके बषनांजी ने प्रश्न किया कि क्यों आपने २२ लक्षणों को बिसार दिया जिनके कारण आपमें मात्र १० लक्षणों वाला धर्माचरण ही शेष रह गया और आपके ही कुछ लोगों को २२ लक्षणों वाल संप्रदाय स्थापित करना पड़ा ॥७॥
.
आधी राति हाटड़ा खोलैं । बीझ्यौ नाज ताकड़ी तोलैं ॥
तब क्यूँ दया न ऊपनी, ना क्यूँ किया बिचार ।
ऐ भी दसौं जाहिंगा, बाईसाँ की लार ॥८॥
आधी रात में ही दुकान को खोलकर घुन लगा हुआ अनाज ग्राहकों को तौलते हो तब जैनियों द्वारा पालित दया तुम जैनों में क्यों नहीं उत्पन्न होती है ? तुम जैन लोग उस समय दया का विचार क्यों नहीं मस्तिष्क में उपजाकर आत्मालोचन करते हो । यदि तुम दयाधर्म को नहीं पालोगे तो निश्चित जानो कि जिस प्रकार बाईस लक्षणात्मक धर्माचरण तुम में से चले गये हैं उसी प्रकार शेष बचे दस भी चले जायेंगे ॥८॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें