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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*सतगुरु शब्द उलंघि करि, जनि कोई सिष जाइ ।*
*दादू पग पग काल है, जहाँ जाइ तहँ खाइ ॥*
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माड़ा सा टटु कौ पीठि चांदी पड़ी,
छानि कै छेकलै बैरि सार्या ।
कौंताँसी किरणि दोसारि नीसरि गई,
चौधि कै चांद बाजिंद मार्या ॥३॥
माड़ा = कमजोर = बीमार टट्टू (नर घोड़े तथा मादा गदही से उत्पन्न वर्णशंकर संतान) = खच्चर की पीठ में चांदी = घाव हो गया । चंद्रमा ने उससे छान के छिद्र से अपनी कौंताँसी = सामान्य सी किरणों के द्वारा पहुँचकर बैर निकाला ।
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वह छोटी सी किरण छिद्र से पार निकलकर सीधे टट्टू के घाव पर पड़ी । घोड़ा = टट्टू ठीक उसी प्रकार तत्काल मर गया जैसे चौथ के चंद्रमा की किरणों के पड़ने से श्रीदादूशिष्य बाजिंद मर गये थे ।
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कहते हैं, दादूजी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने के उपरान्त श्रीगरीबदासजी ने श्रीरज्जबजी को कहा कि अब आप मोड़ वगैरह मत पहना करो । साधुओं जैसा बाना पहना करो । रज्जबजी ने कहा, मैंने जिस रूप में गुरुमहाराज तथा परमात्मा को पाया है, मैं उसको कभी भी न त्यागूंगा क्योंकि गुरु दादूजी ने भेष का कभी भी आग्रह नहीं रखा ।
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इस पर गरीबदासजी तथा रज्जबजी के बीच तकरार हो गई और रज्जबजी नाराज होकर नरायना से सांगानेर चले आये । बाजिंदजी उन दिनों आमेर दादूद्वारे में बिराजते थे । जब उन्हें रज्जबजी के साथ हुए हादसे की खबर लगी तो उन्हें यह घटना नागवार गुजरी ।
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उन्होंने गरीबदासजी को भी भला बुरा कहा ही, दादूद्वारे में रखी दादूवाणी की पुस्तक को भी मावठे(दादूद्वारे व आमेर के महलों की तलहटी का जलाशय जिसमें राजा रानियों के लिये केशर की खेती की जाती थी । दलाराम का बाग इसके आसन्न उत्तर में है) में फेंक दी ।
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इससे बाजिंदजी द्वारा घोर गुरु अपमान हो गया । कुछ ही दिनों में उनकी काँख में भयंकर फोड़ा हो गया । फोड़े के कारण ही उनकी चौथि = चतुर्थी तिथि के दिन मृत्यु हो गई ।इसी घटना का संकेत यहाँ बषनांजी ने किया है ॥३॥
इति चांणक कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ६०॥साषी १११॥
(क्रमशः)

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