बुधवार, 17 जनवरी 2024

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २०३*

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*दादू निरंतर पीव पाइया, जहँ आनन्द बारह मास ।*
*हंस सौं परम हंस खेलै, तहँ सेवक स्वामी पास ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग जैतश्री १९(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२०४ हरि मिलन । दादरा
गोविंद पास सुख विलास१,
श्रवण सुखी सुनत बैन,
वदन२ ज्योति३ निरख नैन ।
आतम राम मिलत चैन४, मगन मुदित दास ॥टेक॥
परम पुंज५ परत हाथ, विविध भांति भरत बाथ,
सर्व बोल सांई साथ, पूरण मन आश ।
जीव ब्रह्म बनत खेल, रोम रोम करत केल६,
रस रूप रेल पेल७, पाये निधि वास ॥१॥
सकल कुशल८ सांई संग, अति उच्छह अंग अंग,
दर्श परस ह्वै अभंग, जन्म सफल तास ।
जीवन मूरि हरि हजूरि, विमल रूप प्राण९ पूरि,
रज्जब प्रकटे अंकूरि, आनन्द बारह मास ॥२॥४॥
हरि मिलन जन्य सुख को प्रकट कर रहे हैं -
✦ गोविन्द के पास सुख और हर्ष१ ही रहता है । उनके वचन सुनने से श्रवणों को सुख होता है । उनकी मुख२ कान्ति३ को देखने से नेत्रों को सुख होता है । राम मिलन से जीवात्मा को आनन्द४ प्राप्त होता है, दास का मन प्रसन्न होता है ।
✦ श्रेष्ठता की राशि५ हाथ में आ पड़ती है । विविध भांति अंक भर के प्रभु से मिलते हैं । प्रभु का साथ ही संत शास्त्र के सभी वचन सार्थक होकर मन की आशा पूर्ण हो जाती है । जीव ब्रह्म के साथ रहकर निरंतर साक्षात्कार रूप खेल खेलता है । रोम रोम से ब्रह्म चिंतन रूप क्रीड़ा६ करता है । चिंतन रूप रस की बाहुल्यता७ हो जाती है वा आनन्द रस की अधिकता हो जाती है । ऐसा प्रतीत होता है कि मानो रस निधि का ही निवास मिल गया है ।
✦ प्रभु के संग सब प्रकार का मंगल८ ही रहता है । अंग अंग में अत्याधिक उत्साह होता है । अखंड दर्शन और चरण स्पर्श होता है । उस भक्त का तो जन्म सफल हो जाता है । जीवन जड़ी रूप हरि के पास उपस्थित रहने वाले प्राणी को हरि का विमल स्वरूप सर्वत्र परिपूर्ण रूप से भासने लगता है इस प्रकार ब्रह्म ज्ञान का अंकुर प्रकट होने पर बारह मास आनन्द ही आनन्द रहता है ।
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित जैत श्री १९ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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