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*आप अकेला सब करै, घट में लहरि उठाइ ।*
*दादू सिर दे जीव के, यों न्यारा ह्वै जाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(४)ईश्वरेच्छा तथा स्वाधीन इच्छा*
श्रीरामकृष्ण - मैं तो मूर्ख हूँ, कुछ जानता ही नहीं, तो यह सब कहता कौन है ? मैं कहता हूँ, ‘माँ, मैं यन्त्र हूँ, तुम यन्त्री हो; मैं गृह हूँ, तुम गृहस्वामिनी हो; मैं रथ हूँ, तुम रथी हो; तुम जैसा कराती हो, मैं वैसा ही करता हूँ; जैसा चलाती हो वैसा ही चलता है, नाहम्-नाहम्, तुम हो, तुम हो ।'
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उन्हीं की जय है, मैं तो केवल यन्त्र मात्र हूँ । श्रीमती जब सहस्र छेदवाला घट लेकर जा रही थीं, तब उसमें से जरा भी पानी नहीं गिरा । यह देखकर सब लोग उनकी प्रशंसा करने लगे, कहा, 'ऐसी सती दूसरी न होगी ।' तब श्रीमती ने कहा, 'तुम लोग मेरी जय क्यों मनाते हो ? कहो, कृष्ण की जय हो । मैं तो उनकी एक दासी मात्र हूँ ।'
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एक दिन ऐसी ही भाव की अवस्था में विजय की छाती पर मैंने एक पैर रख दिया । इधर तो विजय पर मेरी श्रद्धा है, परन्तु उस अवस्था में उस पर पैर रख दिया, इसके लिए भला क्या किया जाय !
डाक्टर - उसके बाद से सावधान रहना चाहिए ।
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श्रीरामकृष्ण (हाथ जोड़कर) - मैं क्या करूँ ? उस अवस्था के आने पर बेहोश हो जाता हूँ । क्या करता हूँ, कुछ समझ में नहीं आता ।
डाक्टर - सावधान रहना चाहिए । हाथ जोड़ने से क्या होगा ?
श्रीरामकृष्ण - तब मुझमें करने-धरने की शक्ति थोड़े ही रह जाती है !
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- परन्तु मेरी अवस्था के सम्बन्ध में क्या सोचते हो ? यदि इसे ढोंग समझते हो तो मैं कहूँगा, तुम्हारी साइन्स-वाइन्स सब खाक है ।
डाक्टर - महाराज, यदि मैं ढोंग समझता तो क्या कभी इस तरह आया करता ? देखो न, सब काम छोड़कर यहाँ आता हूँ । कितने ही रोगियों के यहाँ जा नहीं पाता । यहाँ आकर छः-सात घण्टे तक रह जाता हूँ ।
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श्रीरामकृष्ण - मथुरबाबू से मैंने कहा था, 'तुम यह न सोचना कि तुम एक बड़े आदमी हो, मुझे मानते हो, इसलिए मैं कृतार्थ हो गया । तुम मानो या न मानो ।' परन्तु एक बात है, आदमी क्या कर सकता है, वे (ईश्वर) स्वयं आकर मनायेंगे । ईश्वरीय शक्ति के सामने मनुष्य घास-फूस की तरह है ।
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डाक्टर - क्या आप यह सोचते हैं कि अमुक मछुआ* आपको मानता था इसलिए मैं भी मानूँगा ?... परन्तु हाँ, आपका सम्मान जरूर करता हूँ, आपके प्रति भक्ति करता हूँ, परन्तु वैसी ही, जैसी मनुष्य के प्रति की जाती – (*यहाँ पर डॉक्टर मथुरबाबू के सम्बन्ध में कह रहे हैं, क्योंकि मथुरबाबू मछुआ जाति के थे ।)
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श्रीरामकृष्ण - अजी, क्या मैं मानने के लिए कह रहा हूँ ?
गिरीश घोष - क्या वे आपको मानने के लिए कह रहे हैं ?
(क्रमशः)
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