मंगलवार, 9 जनवरी 2024

*३९. बिनती कौ अंग १०५/१०८*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १०५/१०८*
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कंठ लगावौ१ क्रिपा करी, उर सौं२ लीजै लाइ । 
कहि जगजीवन पतित३ कौं, पावन कीजै आइ ॥१०५॥
(१. कंठ लगावौ=गले लगा लो)   (२. उर सौं=हृदय से)   (३. पतित=गिरा हुआ, पापी)  (४. पावन=पवित्र करने वाला)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप कृपा करके हमें गले लगाकर हृदय से भी लगाइये । इस प्रकार मुझ पतित पापी को पवित्र कर दीजिये ।
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कहि जगजीवन रांमजी, देह बुरी किहि कांम । 
एहि निवड़ते५ अति भली, जे नित सुमिरै नांम ॥१०६॥
(५. निवड़ते=निवृत्त होते, नष्ट होते)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यह देह अगर बुराइयों का कारण हो तो व्यर्थ है । ये राम स्मरण करती हुइ समाप्त हो तो ही भली ।
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भली भली सब तुम्हारी, भाव भगति पिव प्यास ।
बुरी बुरी सब जीव की, सु कहि जगजीवनदास ॥१०७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपकी भाव भक्ति परमात्मा से मिलने का चाव सब भला है । जीव की ही सब गति बुरी है ।
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भली भलाई भला की, जगजीवन हे होइ ।
बुरी बुराई बुरा की, जानत है सब कोइ ॥१०८॥  
संतजगजीवन जी कहते हैं कि भले जन की सब भलाई ही होती है । और बुरे जन की बुराई होती है यह बात सब भली भांति जानते हैं ।
(क्रमशः) 

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