शनिवार, 6 जनवरी 2024

*हासि चिंतावणी कौ अंग ॥*

🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*दादू रूप राग गुण अनुसरे, जहँ माया तहँ जाइ ।*
*विद्या अक्षर पंडिता, तहाँ रहे घर छाइ ॥*
=============
*हासि चिंतावणी कौ अंग ॥*
मिश्र कहौं मिसरी कौ कुंजौ, बिद्या बहुत बेद कौ पुंजौ ॥
और सबैही बाताँ साँचौ, नैक चूक लंगोटी काचौ ॥९॥
मिश्र = पंडितजी को मिश्रजी कहूँ या मिश्री का कुंजौ=डला कहूँ । मिश्रजी विद्यावान हैं, वेद = ज्ञान के भंडार हैं, ब्राह्मणों के अन्य लक्षणों से युक्त होने कारण अन्य सभी बातों = गुणों के भी निधान हैं किन्तु इन सभी गुणों पर पलीता लगाने वाला एक अवगुण लंगोटी का कच्चा होना भी है । (लंगोटी का कच्चा होना = परस्त्री गमन करने वाला ।)
.
आह दीसै पोती की सरभरि, थे दादा कौ रूप ।
याँह संग भूँडा करम कमावै, भला हो मिश्र विद्या रूप ॥१०॥
परस्त्रीगमन मिश्र की हँसी करते हुए उसे चेताते हैं, आह = यह स्त्री तो तुम्हारी पौत्री की उम्र के बराबर है जबकि तुम्हारी उम्र दादा(बाबा) के बराबर है । फिर भी तुम इस पौत्री सदृश स्त्री के साथ, भूंडा करम = कामोपभोग करते हो । हे मिश्रजी ! धन्य है तुम्हारी विद्वता को, धन्य है तुम्हारे विद्वान होने को जो तुम बिना उचितानुचित का विचार किये परस्त्री गमन करते हो और व्यास आसन पर बैठकर पंडिताई बघारते हो ॥१०॥
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें