शनिवार, 6 जनवरी 2024

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २००*

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*आज हमारे रामजी साधु घर आये,*
*मंगलाचार चहुँ दिशि भये, आनन्द बधाये ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. १९८)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग नट नारायण १८(गायन समय रात्रि ९-१२)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२०० सन्त दर्शन । त्रिताल
आये मेरे प्यारे के प्यारे,
दर्शन देखि दृगन सुख पायो, नख शिख लौं ठारे ॥टेक॥
मंगल चार मुदित मन मेरे, मोहन मित्र पधारे ।
अंग अंग आनन्द अति बाढ्यो, नेही नाह निहारे ॥१॥
परम पुनीत प्रीतम पति पेखत, नपावन प्राण हमारे ।
सूख सार सो सैंण१ सनेही, मिलत महादुख टारे ॥२॥
प्राण सु पीव जीव की जीवन, जोवत कारज सारे ।
श्रीपति सहित सकल वश जिनके, जन रज्जब शिर धारे ॥३॥८॥
संत दर्शन जन्य आनन्द को प्रकट कर रहे हैं -
✦ मेरे प्रियतम प्रभु के प्यारे संत पधारे हैं । इनके दर्शन करके नेत्रों को बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ है और नख से शिखा तक सभी अंग शीतल हो गये हैं अर्थात प्रसन्न हुये हैं ।
✦ विश्वविमोहन प्रभु के मित्र संत पधारै हैं, इसमे मेरे मन में प्रसन्नता है, और मंगल व्यहवार हो रहा है । अपने स्वामी के स्नेही संतों को देखकर मेरे प्रति अंग में अति आनन्द बढा है ।
✦ अपने स्वामी के परम पुनीत प्रियतम संतों को देख कर हमारे प्राण पवित्र हो गये हैं । जो सुख सागर रूप हमारे सज्जन१ हैं उन प्रभु के स्नेही संतों से मिलते ही हमारे दु:ख हट गये हैं ।
✦ ये संत प्राणों के स्वामी प्रभुरूप ही हैं, मेरे जीव को तो जीवन रूप ही हैं । देखते ही पाप निवृत्ति रूप कार्य सिद्ध करते हैं । लक्ष्मीपति भगवान के सहित सब जिनके वश में हैं, उन संतों की चरण रज रूप शिर पर धारण करते हैं ।
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित नट नारायण १८ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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