शनिवार, 6 जनवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #३८२

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३८२)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३८२. विनती करूणा । त्रिताल*
*तुम बिन कहु क्यों जीवन मेरा, अजहूँ न देख्या दर्शन तेरा ॥टेक॥*
*होहु दयाल दीन के दाता, तुम पति पूरण सब विधि साचा ॥१॥*
*जो तुम करो सोई तुम छाजे, अपने जन को काहे न निवाजे ॥२॥*
*अकरन करन ऐसैं अब कीजे, अपनो जान कर दर्शन दीजे ॥३॥*
*दादू कहै सुनहु हरि सांई, दर्शन दीजे मिलो गुसांई ॥४॥*
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बहुत प्रयत्न करने पर भी मेरे को आपके दर्शन नहीं मिल सके तो फिर आप ही कहिये कि मेरा जीवन आपके दर्शनों के बिना कैसे रह सकेगा । हे दयालो ! आप तो सर्वव्यापक तथा सत्यपालक तथा दीनों पर दया करने में शूरवीर हैं, इसलिये दर्शन देकर अपनी दयालुता का परिचय दीजिये ।
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आप जो भी कुछ करते हैं वह आपके लिये शोभास्पद ही हैं । तो फिर अपने भक्त पर दया क्यों नहीं करते । आप तो योग्य को भी अयोग्य कर सकते हैं । अतः अपना दास समझकर दर्शन दीजिये । हे विश्व के स्वामिन् हे हरे ! बार-बार दर्शनों की प्रार्थना करता हूँ । अतः दर्शन देवो ।
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स्तोत्ररत्नावली में –
हे भगवन् ! आप दया करके मेरी रक्षा करते हो तो इसमें सृष्टि की मर्यादा की कोई हानि नहीं हैं । आपने अनेकों की रक्षा करी है । हमारे कानों में यह बात पड़ चुकी हैं । आपको शरणागतों की रक्षा करने का व्यसन भी हैं । अतः मेरा उद्धार करने के लिये आप मुझ पर भी अपनी निर्मल दृष्टि डालो । अपने भक्तों की रक्षा में तत्पर रहने वाले प्रभो ! मेरी प्रार्थना को असफल मत करो ।
(क्रमशः)

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