🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*विरहा पारस जब मिला, तब विरहनी विरहा होइ ।*
*दादू परसै विरहनी, पीव पीव टेरे सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
(६)भक्त के संग में । श्रीरामकृष्ण तथा क्रोध-जय ।
इस घटना के बाद लोगों ने आसन ग्रहण किया । रात के आठ बज गये हैं । फिर बातचीत होने लगी ।
श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - यह जो भाव तुमने देखा, इसके सम्बन्ध में तुम्हारी साइन्स क्या कहती है ? तुम्हें क्या यह जान पड़ता है कि यह सब ढोंग है ?
.
डाक्टर (श्रीरामकृष्ण से) - जहाँ इतने आदमियों को ऐसा हो रहा है, वहाँ तो स्वाभाविक ही जान पड़ता है; ढोंग नहीं मालूम होता । (नरेन्द्र से) जब तुम गा रहे थे, 'माँ, पागल कर दे, ज्ञान और विचार की अब आवश्यकता नहीं है', तब मुझसे रहा नहीं गया, खड़ा हो गया, फिर बड़ी मुश्किल से भाव को दबाना पड़ा । मैंने सोचा कि बाहरी दिखाव न होने देना चाहिए ।
.
श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से, हँसकर) - तुम तो अटल, अचल और सुमेरुवत् हो । (सब हँसते हैं) तुम गम्भीरात्मा हो । रूपसनातन का भाव किसी को मालूम न हो पाता था । अगर किसी गड़ही में हाथी उतर जाता है तो पानी में उथल-पुथल मच जाती है, परन्तु बड़े सरोवर में कहीं कुछ नहीं होता । किसी को मालूम भी नहीं होता ।
.
श्रीमती ने सखियों से कहा, 'सखियों, कृष्ण के विरह में तुम लोग इतना रो रही हो, परन्तु मुझे देखो, मेरी आँखों में कहीं एक बूँद भी आँसू नहीं है ।' तब वृन्दा ने कहा, 'सखि, तेरी आँखों में आँसू नहीं है, इसका बहुत बड़ा अर्थ है । तेरे हृदय में विरह की आग सदा जल रही है, आँखों में आँसू आते हैं पर उस अग्नि की ज्वाला से सूख जाते हैं ।
.
डाक्टर - आपके साथ बातचीत में पार पाना कठिन है । (हास्य)
फिर दूसरी चर्चा होने लगी । श्रीरामकृष्ण भावावेश की अपनी पहली अवस्था बतला रहे हैं । और काम, क्रोध आदि को किस तरह वश में लाया जाय, ये बातें भी बतला रहे हैं । डाक्टर - आप भावावेश में पड़े हुए थे, एक दूसरे ने उस समय आपको बूट से पाद-प्रहार किया था, ये सब बातें मैं सुन चुका हूँ ।
.
श्रीरामकृष्ण - वह कालीघाट का चन्द्र हालदार था । वह मथुरबाबू के पास प्रायः आया करता था । मैं ईश्वरावेश में अँधेरे में जमीन पर पड़ा हुआ था । चन्द्र हालदार पहले ही से सोचा करता था कि यह ढोंग किया करता है, मथुरबाबू का प्रिय पात्र बनने के लिए । वह अँधेरे में आकर जूते पहने हुए पैरों से ठेलने लगा । देह में निशान बन गये थे । सब ने कहा, 'मथुरबाबू से कह दिया जाय ।' मैंने मना कर दिया ।
.
डाक्टर - यह भी ईश्वर की लीला है । इससे भी लोगों को शिक्षा होगी । क्रोध किस तरह जीता जाता है, क्षमा किसे कहते हैं, लोग समझेंगे ।
श्रीरामकृष्ण के सामने विजय के साथ भक्तों की बातचीत हो रही है ।
विजय - न जाने कौन मेरे साथ सब समय रहते हैं, मेरे दूर रहने पर भी वे मुझे बतला देते हैं, कहाँ क्या हो रहा है !
.
नरेन्द्र - स्वर्गीय दूत की तरह रखवाली करते हुए !
विजय - ढाके में इन्हें (श्रीरामकृष्ण को) मैंने देखा है देह छूकर !
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए)- तो वह कोई दूसरा होगा ।
नरेन्द्र – मैंने भी इन्हें कई बार देखा है । (विजय से) अतएव किस तरह कहूँ कि आपकी बात पर मुझे विश्वास नहीं होता ?
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें