मंगलवार, 16 जनवरी 2024

जन राघव रत राम से

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*सोई साधु शिरोमणि, गोविंद गुण गावै ।*
*राम भजै विषिया तजै, आपा न जनावै ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*श्रीनिम्बार्कजी*
*छप्पय-*
*जन राघव रत राम से, यूं हरिजन दीन दयाल है ।*
*सनक सनन्दन सुमरि, सनातन सनतकुमारा ।*
*निम्बादित्य बड़ महंत, सुतो उनका मत धारा ॥*
*सुरति विरति हरि भज्यो, करी नीकी विधि सेवा ।*
*इष्ट एक गोपाल, बड़ो देवन को देवा ॥*
*संप्रदाय विधि सुतन की, संत महंत दिग पाल है ।*
*जन राघवरत राम से, यूं हरि जन दीन दयाल है ॥२७४॥*
भक्त जन राम में अनुरक्त होते हैं, इसीलिये इस प्रकार दीनों पर दया करते हैं । सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमारजी के सिद्धान्त का स्मरण करके तथा श्रेष्ठ मानकर उनके मत को निम्बादित्यजी ने धारण किया है ।
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नारायणजी से श्रवण भट्ट तक जो २२ की परम्परा बताई है, उनमें नारदजी से आगे के सभी महानुभवों में निंबादित्यजी ही महान् महन्त हुए हैं । निम्बार्कजी ने संसार से विरक्त होकर श्रेष्ठ प्रीति से हरि का भजन किया था और अति उत्तम विधि से प्रभु की सेवा-पूजा की थी । देवताओं के भी पूज्य देव और महान् एकमात्र गोपालजी ही आपके इष्टदेव थे ।
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ब्रह्माजी के पुत्र सनकादिक भी इस संप्रदाय में दिगपालों के समान संत महन्त हुए हैं अर्थात् जैसे दिक्पाल दिशाओं की रक्षा करते हैं वैसे ही उन संत महन्तों ने अपने उपदेश के द्वारा सभी दिशाओं के लोगों की रक्षा की थी ।
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विशेष विवरण - विक्रम की पाँचवीं शताब्दी में दक्षिण भारत की काशी वैदूर्यपत्तन (पैठण) में पिता ब्राह्मण अरुणजी और माता जयन्ती से आपका जन्म हुआ था । निम्बार्क पीठ सलेमाबाद वाले आपका जन्म द्वापर के अन्त में बताते हैं । आपका पहला नाम नियमानन्दजी था ।
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आपकी साधनभूमि गिरिराज गोवर्धन के पास ध्रुव क्षेत्र है । आपका निम्बार्क नाम प्रचलित हुआ उसका कारण आगे पद्य टीका में बतायेंगे । आपने वेदान्त सूत्रों पर 'वेदान्तसौरभ' भाष्य लिखा है और भी गीताभाष्य आदि ग्रंथ लिखे हैं । आपका सिद्धान्त द्वैताद्वैत प्रसिद्ध ही है ॥
(क्रमशः)

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