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*चित चाँवर हेत हरि ढ़ारे,*
*दीपक ज्ञान हरि ज्योति विचारे ॥*
*घंटा शब्द अनाहद बाजे,*
*आनन्द आरती गगन गाजे ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ४४१)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग धनाश्री २०(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२०८ पंजाबी त्रिताल
आरती कहु कैसी विधि होई,
सौंज१ शिरोमणि सारी खोई ॥टेक॥
प्रथम पाट२ उर बैठें औरे,
परम पुरुष को नांही ठौरें ॥१॥
बामा३ वायु बही बिच आई,
ज्ञान दीप दिल दिया बुझाई ॥२॥
स्वाद शिला पर घण्टा फूटी,
पवन४ चंवर डांडी सुरति५ छुटी ॥३॥
पाती प्रीति पहम६ परिडारी,
फहम७ फूल की माला विसारी ॥४॥
चिंता चोर लिया चित चंदन,
क्यों कीजे अरचा८ प्रभु वंदन९ ॥५॥
ठाकुर खड़े खोड़ि१० को खड़िया,
खोस्यो खल षट् पेड़ा पड़िया११ ॥६॥
रज्जब मांगे सौंज सु दीजे,
अन्तर्यामी आरती कीजे ॥७॥४॥
✦ कहो ? प्रभु की आरती किस प्रकार करें ? आरती करने की श्रेष्ठ सामग्री१ तो सब खो दी है ।
✦ पहले तो हृदय रूप सिंहासन२ पर कामादिक ओर ही अनेक बैठे हैं, परम पुरुष प्रभो को बैठने के लिये स्थान ही नहीं है ।
✦ नारी३ असक्ति रूप वायु हृदय के मध्य आकर जोर से चली है, उसने हृदय का ज्ञान दीपक बुझा दिया है ।
✦ स्वादरूप शिला पर घंटा फूट गया है । प्राण वायु४रूप चंवर की वृत्ति५रूप डंडी हाथ से छुट गई है । अर्थात श्वास के साथ वृत्ति नहीं है ।
✦ प्रीतिरूप तुलसी पत्र पृथ्वी६ पर डाल दिया है अर्थात पृथ्वी के पदार्थों और व्यक्तियों में प्रीति कर ली है । ज्ञान७ रूपी फूलों की माला भूल गये हैं अर्थात ज्ञान विचार नहीं रहा है ।
✦ चिंता ने चित्तरूप चंदन चुरा लिया है । तब प्रभु की पूजा८ और नमस्कार९ कैसे करें ।
✦ जैसे मूर्तिरूप१० ठाकुर खड़िया मिट्टीरूप चंदन का तिलक लगाये खड़े हैं और उनके आगे पड़ा११ हुआ पेड़ा अन्य लोग ही उठा लेते हैं, वैसै ही अजित मन और पंच ज्ञानेन्द्रिय ज्ञान इन छ: दुष्टों ने हमारी पूजा सामग्री छीन ली है ।
✦ अन्तर्यामी प्रभो ! मैं मांग रहा हूँ, मुझे आप अपनी पूजा की सामग्री प्रदान करें, जिससे मैं आपकी आरती कर सकूं ।
(क्रमशः)

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