सोमवार, 8 जनवरी 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #३८३

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३८३)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
===========
*३८३. उपदेश चेतावनी । पंजाबी त्रिताल*
*कागा रे करंक पर बोलै, खाइ माँस अरु लग ही डोलै ॥टेक॥*
*जा तन को रचि अधिक सँवारा, तो तन ले माटी में डारा ॥१॥*
*जा तन देख अधिक नर फूले, सो तन छाड़ि चल्या रे भूले ॥२॥*
*जा तन देख मन में गर्वाना, मिल गया माटी तज अभिमाना ॥३॥*
*दादू तन की कहा बड़ाई, निमष माँहि माटी मिल जाई ॥४॥*

जैसे काक पक्षी मृत पशु के करंक पर बैठकर बोलता है और उसको खाने की इच्छा से इधर-उधर उड़ता रहता हैं । फिर आकर उसी करंक पर बैठ जाता है । ऐसे ही वह प्राणी स्वार्थ के वशीभूत होकर इस संसार में बहुत प्रिय बोलता और प्रेम दीखाता हैं । पास में उठता बैठता हैं । और अपने शरीर को वस्त्राभूषणों से सुन्दर बनाता हैं । किन्तु उसी शरीर को मरने के बाद लोग जला कर राख कर देते हैं । 
.
एक दिन इस शरीर का स्वामी जीव भी इस को छोड़कर चला जायेगा । इसी प्रकार सभी प्राणी इस शरीर के लालन-पालन में लग कर उसमें अपनी आत्मा का अध्यास कर लेते हैं । अतः वे हरि भजन नहीं आकर सकते । यह शरीर अभिमान के योग्य नहीं । 
.
माता-पिता के शरीर भी प्रशंसा करने के योग्य नहीं है । क्योंकि अन्त में वे भी मिट्टी में मिला दिये जाते हैं । अतः शरीराध्यास को त्याग कर हरि का भजन ही करना चाहिये । शरीर तो क्षणभंगुर और विनाशी हैं । उसमें अध्यास करना सर्वथा निष्फल हैं । 
.
योगवासिष्ठ में लिखा है कि –
हे महामुने ! गीली आंतों(मलमूत्र की थैलियों) से युक्त तथा अन्त में पतनशील(मरणधर्मा) हैं । जो शरीर संसार में सबके सामने प्रकाशित हो रहा हैं वह भी केवल दुःख भोगने के लिये ही हैं । वह थोड़े से खान-पान से आनन्दित हो उठता है और थोड़े में ही शीतघाम आदि से खिन्न हो जाता हैं । अतः इस शरीर के समान गुणहीन और अधम दुसरा कोई नहीं । 
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें