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*दादू टीका राम को, दूसर दीजे नांहि ।*
*ज्ञान ध्यान तप भेष पक्ष, सब आये उस मांहि ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*त्रिधामों के पुजारी भक्त*
*छप्पय-*
*ये मुक्त भये माठा-१ पति, जन राघव जप रामजी ।*
*१ बालकृष्ण, २ बड़भरत, ३ गोविन्दो, ४ सोठो, ५ केशो ।*
*६ मुकन्द, ७ खेम, ८ हरिनाथ, ९ भीम हरि घर सु प्रवेशो ॥*
*१० प्रयागदास, ११ गजपती, १२ देवाजु, १३ गोपीनाथहि ।*
*१४ गजगोपाल जंजाल, तज्यो १५ खेता हरि साथहि ॥*
*श्री जगनाथ रणछोड रट, नर-नारायण धामजी ।*
*ये भक्त भये माठा पति, जन राघव जप रामजी ॥२७२॥*
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श्रीबदरिकाश्रम में नर-नारायण के, पुरी में जगन्नाथजी के और द्वारिका में रणछोड़जी के ये पुजारी हरि भजन परायण भक्त हुये हैं-१. बालकृष्णजी, २. बड़े भरतजी, ३. गोविन्दजी, ४. सोठाजी, ५. केशवजी, ६. मुकुन्दजी, ७. खेमजी, ८. हरिनाथजी, ९. भीमजी- ये सभी हरि के स्वरूप रूप घर में प्रविष्ट हुये हैं । १०. प्रयागदासजी, ११. गजपतिजी, १२. देवाजी, १३. गोपीनाथजी, १४. गजगोपालजी-इनने जगत के जंजाल को त्याग दिया था । १५. खेताजी, ये सभी पुजारी भक्त भगवान् के श्रीअंग के सदा समीप रहने वाले थे और रामजी के ध्यान तथा नाम जप के द्वारा मुक्त हो गये हैं ॥२७२॥
(क्रमशः)

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