सोमवार, 29 जनवरी 2024

पंडित जीत करी सु विजै दिग

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*एक साच सौं गहगही, जीवन मरण निबाहि ।*
*दादू दुखिया राम बिन, भावै तीधर जाहि ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*इन्दव-*
*पद्य टीका*
*पंडित जीत करी सु विजै दिग,*
*हार गये सब भीत उपाई ।*
*है सुखपाल चढै द्विप१ बाजि२ हु,*
*आत भये नदियापुर भाई ॥*
*ब्राह्मण शंक महाप्रभु लेखत३,*
*जावत देव-धुनी४ सुखदाई ।*
*बैठ गये ढिग नम्र किये मुख,*
*नैक सुनैं जग कीरति छाई ॥३७९॥*
प्रथम अवस्था में काश्मीरी केशवभट्टजी ने दिग्विजय करी थी, उनसे सब पंडित हार गये थे । आपने महाविद्वानों को हरा कर उनके लिये भय उत्पन्न कर दिया था ।
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आप चौडोल नामक सुखपाल(पालकी) पर चढ़कर चलते थे और आपके साथ बहुत से हाथी१, घोड़े२ तथा मनुष्य चलते थे । दिग्विजय करते करते नदिया(नवद्वीप) शांतिपुर में आये । 
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हे श्रोता भाइयो ! वहाँ के ब्राह्मण बड़े बड़े नैयायिक पंडित थे । केशवभट्टजी का प्रभाव देखकर डर गये तब महाप्रभु श्रीकृष्ण चैतन्यजी कुछ विचार३ करके, सुखदाता लीला का विस्तार करते हुये श्रीगंगाजी४ के तीर जहाँ केशवभट्टजी बैठे थे,
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वहाँ आकर पास में बैठ गये और प्रणाम करके नम्रतापूर्वक बोले कि- आपका यश जगत् में छा रहा है । इसलिये आपके मुख से किंचित शास्त्रचर्चा सुनने की अभिलाषा है । सो कृपा करके सुनाइये ।
(क्रमशः)

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