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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ११३/११६*
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कहि जगजीवन रांमजी, दुखी कोइ मति होइ ।
सब कोइ सुखिया११ कीजिये, अपना अंग स्यूं मोहि ॥११३॥
(११. सुखिया=सुखी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु कोइ दुखी न हो आप सबको अपने आशीर्वाद द्वारा सुखी कर दीजिये सब पर कृपा हस्त रखें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, मति कोइ दोजग जाइ१२ ।
सत संगति बैकुंठ मैं, सब कौं राखौ आइ ॥११४॥
(१२. मति कोइ दोजग जाइ=कोई नरक में जाने योग्य पाप न करे)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि कोइ भी नर्कगामी न हो, सब अच्छी करणी कर बैकुंठ में प्रभु सानिध्य में रहें ऐसी आप कृपा करें ।
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कहि जगजीवन रांमजी, घट घट आनंद एह ।
परम पुरिष संग आतमां, देह विदेह सनेह ॥११५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु हर हृदय में यह हो कि वह प्रभु हमारे संग है और हमारी आत्मा देह सब उनके पास है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, आस१ बुझावौ पास२ ।
प्रेम भगति मंहि राखि मन, हरि हरि सास निसास३ ॥११६॥
(१. आस=वासना) (२. पास=पाश, भवबन्धन) (३. निसास=निःश्वास)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आपसे आशा है कि आप हमारे भव पाश छुड़ा देंगें । हमारा मन हमेशा प्रेम भक्ति में रखकर हमारी हर सांस व निश्वास में हरि हरि का स्मरण हो ।
(क्रमशः)

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