🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू आनंद सदा अडोल सौं, राम सनेही साध ।*
*प्रेमी प्रीतम को मिले, यहु सुख अगम अगाध ॥*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
मास्टर - श्रीरामकृष्णदेव के पास वे आया-जाया करते हैं । अहंकार अगर उनमें हो भी, तो कुछ दिनों में न रह जायगा । श्रीरामकृष्णदेव के पास बैठने से जीवों का अहंकार दूर हो जाता है, क्योंकि उनमें स्वयं में अहंकार नहीं है । नम्रता रहने से अहंकार नहीं रह सकता ।
.
विद्यासागर महाशय इतने बड़े आदमी हैं, फिर भी उन्होंने उस समय विनय और नम्रता प्रदर्शित की जब श्रीरामकृष्णदेव उन्हें देखने गये थे - उनके बादुड़बागानवाले मकान में । जब वहाँ से बिदा हुए तब रात के नौ बजे का समय था । विद्यासागर महाशय लाइब्रेरीवाले कमरे से बराबर साथ-साथ हाथ में बत्ती लिये हुए उन्हें गाड़ी पर चढ़ा गये थे, और बिदा होते समय हाथ जोड़े हुए थे ।
.
डाक्टर - अच्छा इनके (श्रीरामकृष्ण के) सम्बन्ध में विद्यासागर महाशय का क्या मत है ?
मास्टर - उस दिन बड़ी भक्ति की थी, परन्तु बातचीत करके मैंने देखा, वैष्णवगण जिसे भाव कहते हैं, इस तरह की बातें उन्हें पसन्द नहीं, - जैसा आपका मत है ।
.
डाक्टर - हाथ जोड़ना, पैरों पर सिर रखना यह सब मुझे पसन्द नहीं । सिर जो कुछ है, पैर भी वही है । परन्तु जिसे यह ज्ञान है कि सिर कुछ है और पैर कुछ, वह ऐसा कर सकता है ।
.
मास्टर - आपको भाव पसन्द नहीं है । श्रीरामकृष्णदेव आपको कभी कभी गम्भीरात्मा कहा करते हैं, आपको शायद याद हो । उन्होंने कल आपके लिए कहा था, 'छोटीसी गड़ही में हाथी उतर जाता है तो पानी में उथलपुथल मच जाती है, परन्तु बड़े सरोवर में कहीं कुछ नहीं होता ।' गम्भीरात्मा के भीतर भाव-हाथी के उतरने पर उसका कहीं कुछ नहीं होता । वे कहते हैं, आप गम्भीरात्मा हैं ।
.
डाक्टर - मैं किसी तरह की प्रशंसा नहीं चाहता । आखिर भाव और है क्या ? यह - केवल एक प्रकार की ‘feelings’ है । इसी प्रकार की अन्य ‘feelings’ भी होती हैं, उदाहरणार्थ 'भक्ति' । जब यह अत्यधिक हो जाती है तो कोई तो उसे दबाकर रख सकता है, और कोई नहीं ।
.
मास्टर - 'भाव' का अर्थ कोई एक तरह से समझाता है, और कोई समझा ही नहीं सकता । परन्तु महाशय, यह बात तो माननी ही होगी कि भाव और भक्ति ये अपूर्व वस्तुएँ हैं । मैंने आपके पुस्तकालय में डारविन के सिद्धान्तों पर लिखी हुई स्टेबिंग की एक पुस्तक देखी है ।
.
स्टेबिंग साहब का मत है कि मनुष्य का मन बड़ा ही आश्चर्यजनक है - उसका निर्माण चाहे क्रम-विकास (Evolution) द्वारा हुआ हो, अथवा ईश्वर के एक खास सृष्टि-उत्पादन से । स्टेबिंग साहब ने एक बड़ी अच्छी उपमा दी है ।
.
उन्होंने कहा है, ‘प्रकाश को ही लीजिये । चाहे आप प्रकाश की तरंगों के सिद्धान्त को जानें या न जानें, प्रत्येक दशा में प्रकाश आश्चर्यजनक ही है ।’
डाक्टर - हाँ, और देखते हो, स्टेबिंग डारविन के सिद्धान्त को मानता है, फिर ईश्वर को भी मानता है !
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें