🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*साहिब जी के नांव में, सब कुछ भरे भंडार ।*
*नूर तेज अनन्त है, दादू सिरजनहार ॥*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*(२)मास्टर तथा डाक्टर का सम्भाषण*
.
डाक्टर के घर पर पहुँचकर मास्टर ने देखा, डाक्टर दो-एक मित्रों के साथ बैठे हुए हैं ।
डाक्टर (मास्टर से) - अभी मिनट भर हुआ होगा, मैं तुम्हारी ही बातें कर रहा था । दस बजे आने के लिए तुमने कहा था, मैं डेढ़ घण्टे से बैठा हुआ हूँ । कैसे हैं, क्या हुआ, इसी सोच में पड़ा था । (मित्र से) अजी, जरा वही गाना गाओ तो ।
.
मित्र गा रहे हैं –
गाना - देह में जब तक प्राण हैं तब तक उनके नाम और गुणों का कीर्तन करते रहो । उनकी महिमा एक ज्वलन्त ज्योति है - संसार को प्रकाशित करने वाली । सकल जीवों को सुख देनेवाला प्रेमामृत-प्रवाह बह रहा है । उनकी अपार करुणा का स्मरण कर शरीर पुलकित हो जाता है । वाणी क्या कभी उनकी थाह पा सकती है ?
.
उनकी कृपा से पल भर में समस्त शोक दूर हो जाते हैं । मनुष्य उन्हें सर्वत्र - ऊपर, नीचे, देश-देशान्तर, जल-गर्भ, आकाश में-अक्लान्त ढूँढ़ते रहते हैं, और अनवरत जिज्ञासा करते रहते हैं, ‘उनका अन्त कहाँ है, उनकी सोमा कहाँ तक है ?’ वे चेतन-निकेतन हैं, पारस-मणि हैं, सदा जाग्रत और निरंजन हैं । उनके दर्शन से दुःख का लेशमात्र भी नहीं रह जाता ।
.
डाक्टर (मास्टर से) - गाना बहुत अच्छा है, है न ? विशेषतः उस जगह, जहाँ यह है - "लोक अनवरत जिज्ञासा करते रहते हैं, 'उनका अन्त कहाँ है, उनकी सीमा कहाँ तक है ?’”
मास्टर - हाँ, वह भाग बड़ा सुन्दर है, अनन्त के खूब भाव हैं ।
.
डाक्टर - (सस्नेह) - दिन बहुत चढ़ गया । तुमने भोजन किया या नहीं ? मैं दस बजे के भीतर भोजन कर लेता हूँ, फिर डाक्टरी करने निकलता हूँ । बिना खाये अगर निकल जाता हूँ, तो तबीयत खराब हो जाती है । एक दिन तुम लोगों को भोजन कराने की बात सोच रहा हूँ ।
मास्टर - यह तो बड़ी अच्छी बात है ।
डाक्टर - अच्छा, यहाँ या वहाँ ? तुम लोग जैसा कहो ।
.
मास्टर – महाशय, यहाँ हो चाहे वहाँ; सब लोग आनन्द से भोजन करेंगे ।
अब जगन्माता काली की बात चलने लगी ।
डाक्टर - काली तो एक भीलनी थी । (मास्टर हँसते हैं)
मास्टर - यह बात कहाँ लिखी है ?
डाक्टर - मैंने ऐसा ही सुना है । (मास्टर हँसते हैं)
पिछले दिन विजयकृष्ण और दूसरे भक्तों को भावसमाधि हुई थी । उस समय डाक्टर भी थे । वही बात हो रही है ।
.
डाक्टर - भावावेश तो मैंने देखा । पर क्या अधिक भावावेश होना अच्छा है ?
मास्टर - श्रीरामकृष्णदेव कहते हैं, ईश्वर की चिन्ता करके जो भावावेश होता है, उसके अधिक होने पर कोई हानि नहीं होती । वे कहते हैं, मणि की ज्योति से जो उजाला होता है उससे शरीर स्निग्ध हो जाता है, जलता नहीं ।
.
डाक्टर - मणि की ज्योति; वह तो प्रतिबिम्बित ज्योति (Reflected light) है ।
मास्टर - वे और भी कहते हैं कि अमृत-सरोवर में डूबने से कोई मरता नहीं । ईश्वर अमृत-सरोवर हैं, उनमें डूबने से आदमी का अनिष्ट नहीं होता, वरन् वह अमर हो जाता है; परन्तु तभी, अगर ईश्वर पर विश्वास हो ।
.
डाक्टर - हाँ, यह बात ठीक है ।
डाक्टर गाड़ी में बैठे, दो-चार रोगियों को देखकर श्रीरामकृष्णदेव को देखने जायेंगे । रास्ते में फिर मास्टर के साथ बातचीत होने लगी । चक्रवर्ती के अहंकार की बात डाक्टर ने चलायी ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें