गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

*स्वारथी बक्ता कौ अंग*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू निवरे नाम बिन, झूठा कथैं गियान ।*
*बैठे सिर खाली करैं, पंडित वेद पुरान ॥*
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*स्वारथी बक्ता कौ अंग ॥*
बषनां आवै तब कहै, माली बारंबार ।
मुहड़ा सेती राम राम, चित्त चड़स की लार ॥१॥
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पुराने जमाने में जब सिंचाई चड़स और बैलों द्वारा कुवे से पानी निकालकर की जाती थी तब कुवे के ढाणें पर चड़स को कुवे में उतारने व आने पर झेलने वाला व्यक्ति राम राम बोला करता था ।
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तब बैलों को हाँकने वाला व्यक्ति बैलों को रोक लेता था । इस प्रक्रिया में यद्यपि चड़स को संभालने वाला व्यक्ति मुँह से तो राम राम बोलता था किन्तु उसकी चित्तवृत्ति राम राम कहने में न होकर चड़स के आने-जाने में होती थी ।
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ऐसे ही स्वार्थी वक्ता की चित्तवृत्ति श्रोताओं को भक्तिमार्ग में लगाने की नहीं होती । उसकी चित्तवृत्ति तो इस चिंतन में लगी रहती है कि कब कथा पूरी हो और कब मुझे दक्षिणा मिले ॥१॥
इति स्वार्थी बक्ता कौ अंग ॥अंग ६६॥साषी १२२॥
(क्रमशः)

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