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*आनन्द मंगल भाव की सेवा,*
*मनसा मन्दिर आतम देवा ।*
*भक्ति निरन्तर मैं बलिहारी,*
*दादू न जानै सेव तुम्हारी ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ४४०)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग धनाश्री २०(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२०९ अद्धा
यूं आरती गुरु ऊपर कीजे,
जामें आतम राम लहीजे ॥टेक॥
ज्ञान ध्यान गुरु मांही पाया,
विषम१ विषय सौं प्राण छुड़ाया ॥१॥
दुख दरिया मांही तैं काढे,
नाम जहाज जीव ले चाढे ॥२॥
माया मोह काढि मन धोवै,
परम पवित्र गुरु तैं होवैं ॥३॥
जिन अंगों२ प्राणपति सेवैं,
ते सब अंग३ गुरु दिल देवैं ॥४॥
गुरु प्रसाद परम पद पावैं,
जन रज्जब जुग जुग बलि जावें ॥५॥५॥
✦ जिस गुरु के ज्ञान में स्थित होने से आत्मस्वरूप राम की प्राप्ति होती है, उन गुरुदेव की आरती इस प्रकार करनी चाहिये ।
✦ गुरु के द्वारा ही ज्ञान ध्यान प्राप्त हुआ है, गुरु ने कठिन१ विषय पाश के प्राणियों को छुड़ाया है ।
✦ संसार रूप दु:ख समुद्र से निकाल कर जीवों को प्रभु के नाम रूप जहाज में चढाया है ।
✦ मन को माया के मोह में निकाल कर उसका पापरूप मैल धोते हैं । गुरु के द्वारा प्राणी परम पवित्र हो जाते हैं ।
✦ जिन लक्षणों२ से प्राणपति प्रभु की सेवा की जाती है, वे सब लक्षण३ गुरु देकर हृदय में स्थित करते हैं ।
✦ गुरु की कृपा से प्राणी परम पद स्वरूप ब्रह्म को प्राप्त करते हैं, उन गुरु की मैं प्रतियुग में बलिहारी जाता हूं ।
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित राग धनाश्री २० समाप्तः ।
इति श्री पूज्य चरण स्वामी धनाराम शिष्य स्वामी नारायणदास कृत श्री रज्जब
गिरार्थ प्रकाशित सहित रज्जबवाणी पद भाग समाप्त: ।
(क्रमशः)

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