मंगलवार, 13 फ़रवरी 2024

*श्रीभट सुगुरु प्रसाद से*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*धरती अम्बर रात दिन, रवि शशि नावैं शीश ।*
*दादू बलि बलि वारणें, जे सुमिरैं जगदीश ॥*
==========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*हरिव्यासजी*
*छप्पय-*
*श्रीभट सुगुरु प्रसाद से, दुर्गा को दीक्षित करी ॥*
*धर चर की शिष भयी, खेचरी अद्भुत मानें ।*
*कथ सकल विख्यात, साधु सब महिमा जानें ॥*
*संतन का सु समूह, सदा ही साथ रहावै ।*
*ज्यों योगेश्वर बीच, जनक शोभा अति पावै ॥*
*हरिव्यास तेजस्वि जान के, प्रजा सर्व पाँवन परी ।*
*श्रीभट सुगुरु प्रसाद से, दुर्गा को दीक्षित करी ॥२७८॥*
.
हरिव्यासजी ने अपने श्रेष्ठ गुरु श्रीभट्टजी के कृपा प्रसाद से दुर्गादेवी को भी दीक्षा दी थी । पृथ्वी पर विचरने वाले हरिव्यासजी की शिष्या आकाश में चलने वाले दुर्गादेवी हुई, इसका अद्भुत बात मानी जाती है, किन्तु यह कथा सब जगत् में विख्यात है ।
.
सभी संत आपकी उक्त महिमा को जानते हैं और गाते हैं । आपके साथ में सदा ही श्रेष्ठ संतों का समूह रहता था । जैसे योगेश्वरों के मध्य जनकजी अति शोभा को प्राप्त हुये थे, वैसे ही आप संतों के मध्य विराजे हुए सुशोभित होते थे ।
.
हरिव्यासजी को परम तेजस्वी मानकर सब प्रजा उनके चरणों में पड़ी थी ॥२७८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें