शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

*किसमिस देखि बदाम नैं*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू भेष बहुत संसार में, हरिजन विरला कोइ ।*
*हरिजन राता राम सौं, दादू एकै होइ ॥*
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किसमिस देखि बदाम नैं, नालेराँ ऊपर जोइ ।
बषनां बारै क्यूँ नहीं, माहीं अंम्रत होइ ॥३॥
अपने आपको सर्वाधिक मीठी वस्तु के रूप में जानने वाली किसमिस ने (भेषधारी अथवा सांसारिक प्राणियों ने) बादाम और नारियल (भेष रहित किन्तु स्वात्म तत्त्व साक्षात्कारी साधु) को देखकर कहा, इनमें तो कुछ भी नहीं है । बस काम की वस्तु तो मैं ही हूँ । किन्तु बषनांजी कहते हैं, किसमिस तो ऊपर से ही मीठी है किन्तु बादाम तथा नारियल में तो अंदर अमृत ही अमृत भरा है । हाँ, उनके ऊपरी भाग छिलके में कुछ नहीं हैं । सांसारिक बाना है ॥३॥
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*सकाम निहकाम साध कौ अंग ॥*
मौलै भाइ बसत ह्वै मौली, कौंण दिसावरि जावै ।
बषनां बात* भाव परि चाली, सौ कोसाँ तैं आवै ॥४॥
मौलै भाइ = सस्ते दामों वाली वस्तु सस्ती होती है और वह सभी जगह के व्यापारियों द्वारा रखे जाने के कारण सभी जगहों और उपलब्ध हो जाती है, उसे कौन दिसावर = विदेश = दूसरे गाँवों में बेचने जाए ! अर्थात् कोई नहीं जाता । ऐसे ही = भेषधारी साधु तो सर्वत्र मिल जाते हैं, उनके यहाँ दूर देशान्तरों के आत्मजिज्ञासु क्यों आवें । 
इसके विपरीत जो वस्तुएँ मूल्यवान होती हैं, वे सौ कोसों से = दूर दूर से मंगवाई जाती हैं अथवा उन्हें खरीदने को खरीददार आते हैं । ऐसे ही जो आत्मसाक्षात्कारी साधु-महात्मा होते हैं, उनके पास दूर-दूर से आत्मजिज्ञासु आते हैं और रामनाम की साधना का रहस्य जानते हैं । कभी कभी ही ऐसे महात्मा उपदेश देने के लिये परिभ्रमण करते हैं ॥४॥
(क्रमशः)

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