शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024

*खोल कहो इस दूषन भूषन*

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*दादू पद जोड़े का पाइये, साखी कहे का होइ ।*
*सत्य शिरोमणि सांइयां, तत्त न चीन्हा सोइ ॥*
*कहबा सुनबा मन खुशी, करबा औरै खेल ।*
*बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*खोल कहो इस दूषन भूषन,*
*मान कहा दुख दोष कहां है ।*
*काव्य प्रबन्ध रहे कित लेशहु,*
*आयसु द्यौ सु दिखाउं जहां है ॥*
*भाषि बतावत औगुन सो गुन,*
*धाम गये कहि आत पहां१ है ।*
*शारद ध्यान करयो तब आवत,*
*जीत करी जग बागल वहां२ है ॥३८१॥*
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श्रीचैतन्यजी ने कहा- "इसके अर्थ में जो दूषण और भूषण हैं सो सब खोल कर कहिए ।" दूषण शब्द सुनकर भट्टजी कुछ दुःख मानकर बोले- "मेरी कविता में दूषण कहाँ है ?"
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चैतन्यजी ने कहा- "काव्य प्रबन्ध में कहीं दोष का लेश तो रह जाता है । मुझे आज्ञा दें तो जहाँ है वहाँ बताऊँ ।" भट्टजी ने कहा - "बताओ ।"
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तब महाप्रभुजी ने नवीन चमत्कारयुक्त अर्थ तथा जो अवगुण और गुण थे सब सुना दिये । भट्टजी ने कहा- "अच्छा प्रातः१ काल आकर हम तुमको फिर समझायेंगे । ऐसा कहकर वे अपने स्थान पर चले गये ।
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वहाँ एकान्त में सरस्वतीजी का ध्यान किया तब सरस्वतीजी आयीं । उनको भट्टजी ने कहा- "हे देवि ! सम्पूर्ण जगत में मेरी जीत करा कर इस बालक से मुझ को हरा२ दिया ।"
(क्रमशः)

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