शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

*३९. बिनती कौ अंग १३७/१४०*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १३७/१४०*
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एक इनायत१ सुखी बंदा, बंदगी२ इकलास३ ।
लापरद४ दर दीदार नूरी५, सु कहि जगजीवनदास ॥१३७॥
(१. इनायत=उपकार)   (२. बंदगी=सेवा)    {३. इकलास=एकरस(निरन्तर)}
{४. लापरद=लापर्द(आवरणरहित)}   (५. दीदार नूरी=दिव्य प्रकास के दर्शन)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आपकी निरंतर सेवा मिलजाये और आपके तेजोमय स्वरुप के दर्शन हो जाये तो यह जीव सुखी हो जाये ।
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सिकम नूर निवास दुखता, अल्लह सैं नापादि ।
कहि जगजीवन बंदगी कर, दरदवंद लहै दादि ॥१३८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मन में आपके दर्शन की हसरत या चाह का दुख है । मैं आपकी सेवा कर स्वयं को धन्य करना चाहता हूँ ।
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कहि जगजीवन अलख हरि, रांम धणीं करतार ।
परम पुरिष परमेस्वर, सतगुरु करसी सार६ ॥१३९॥
(६. करसी सार=सम्हाल करेंगे)  
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हमारे तो अलख प्रभु ही हमारे स्वामी हैं वे परम पुरष प्रभु सतगुरू महाराज ही हमारी रक्षा व सम्भाल करेंगे ।
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सतगुरु सार करौ धणीं, सोइ सुमिर सब ठांम ।
सोई जगजीवन सब कह्या, उलट कह्या जहं रांम ॥१४०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आप हमारी रक्षा करो हम सर्वत्र आपका स्मरण करें जो भी हमें आपका नाम बोले हमारा प्रत्युत्तर भी आपका नाम ही हो ।
(क्रमशः)

 

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