मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

*है हरि नाम मशाल*

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*जहाँ अरण्ड अरु आक थे, तहँ चन्दन ऊग्या मांहि ।*
*दादू चन्दन कर लिया, आक कहै को नांहि ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*छप्पय-*
*परशुरामजी*
*अजमेरा के आदमी, परशुराम पावन किया ॥*
*मलिया ढिग बहु वृक्ष, वात से चन्दन कीन्हा ।*
*है हरि नाम मशाल, अंधेरा अघ हर लीन्हा ॥*
*भक्ति नारदी भजन, कथा सुनतें मन राजी ।*
*श्रीभट पुनि हरिव्यास, कृपा सत संगति साजी१ ॥*
*हरि नाम औषधि पाय के, रोग दोष गत२ कर दिया ।*
*अजमेरा के आदमी, परशुराम पावन किया ॥२७९॥*
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परशुरामजी ने अजमेर प्रान्त के मनुष्यों को अपने उपदेश के द्वारा भगवद्भक्ति में लगाकर पवित्र किया था ।
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जैसे मलयागिरि के पास के वृक्षों को मलयागिरि के चन्दन की वायु चन्दन बना देती है, वैसे ही परशुरामजी का संग मनुष्यों को भक्त बना देता था । आपके अन्तःकरण रूप हाथ में हरि नाम रूप मशाल थी, उससे प्राणियों के पाप रूप अंधेरे को आपने नष्ट कर दिया था ।
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आपका मन संकीर्तन रूप नारदी भक्ति, भजन और कथा सुनकर बहुत प्रसन्न होता था । अपने दादागुरु श्रीभट्टजी और गुरु हरिव्यासजी की कृपा से आपने सत्संग को खूब बढ़ाया१ था ।
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प्राणियों को हरिनाम रूप औषधि पान कराकर उनके जन्म मरण रूप रोग और काम क्रोधादि दोषों को नष्ट२ कर दिया था ।
(क्रमशः)

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