सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

*गृहस्थ तथा निष्काम कर्म । थियॉसफी*

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*मन चित मनसा पलक में, सांई दूर न होइ ।*
*निष्कामी निरखै सदा, दादू जीवन सोइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(६)गृहस्थ तथा निष्काम कर्म । थियॉसफी ।*
श्रीरामकृष्ण - (श्याम बसु से ) - संसार-धर्म में दोष नहीं; परन्तु ईश्वर के पाद-पद्मों में मन रखकर, कामनारहित होकर कर्म करना चाहिए । देखो न, अगर किसी की पीठ में एक फोड़ा हो जाता है तो सब के साथ वह बातचीत भी करता है और घर के काम-काज भी देखता है, परन्तु उसका मन फोड़े पर ही लगा रहता है; इसी तरह, घर का कार्य करते हुए भी ईश्वर की ओर मन को लगाये रखना चाहिए ।
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"संसार में बदचलन औरत की तरह रहो । उसका मन तो यार पर लगा रहता है, पर वह घर का सब काम-काज सम्भालती रहती है । (डाक्टर से) समझे ?" डाक्टर - वह भाव अगर न रहे तो कैसे समझूँगा ?
श्याम बसु - कुछ तो अवश्य ही समझते हो ! (सब हँसते हैं)
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श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - और यह व्यवसाय (समझने का) वे बहुत दिनों से कर रहे हैं । क्यों जी? (सब हँसते हैं)
श्याम बसु – महाराज ! थियॉसफी का क्या मत है ?
श्रीरामकृष्ण - असल बात यह है कि जो लोग चेला बनाते फिरते हैं, वे हलके दर्जे के हैं । और जो लोग सिद्धि अर्थात् अनेक तरह की शक्तियाँ चाहते हैं, वे भी हलके दर्जे के हैं ।
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जैसे, पैदल गंगा पार कर जाना, यह सिद्धि है । दूसरे देश में एक आदमी क्या बातचीत कर रहा है, यह कह सकना एक सिद्धि है । इन सब आदमियों के लिए ईश्वर पर भक्ति होना बहुत कठिन है ।
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श्याम बसु - परन्तु वे लोग (थियाँसफी सम्प्रदायवाले) हिन्दू धर्म को फिर से स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - मुझे उनके सम्बन्ध में काफी ज्ञान नहीं है ।
श्याम बसु - मृत्यु के बाद जीवात्मा कहाँ जाता है - चन्द्रलोक में, नक्षत्रलोक में या अन्य किसी लोक में - ये सब बातें थियॉसफी से समझ में आ जाती है ।
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श्रीरामकृष्ण – होगा ! मेरा भाव कैसा है, जानते हो ? हनुमान से एक आदमी ने पूछा था, ‘आज कौनसी तिथि है ?’ हनुमान ने कहा, 'मैं वार, तिथि, नक्षत्र, यह कुछ नहीं जानता, मैं तो बस श्रीरामचन्द्रजी का स्मरण किया करता हूँ ।' मेरा भी ठीक ऐसा ही भाव है ।
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श्याम बसु - उन लोगों का 'महात्माओं' के अस्तित्व में विश्वास है । क्या आपका भी है ?
श्रीरामकृष्ण - यदि तुम मेरी बात पर विश्वास करो तो हाँ, मुझे है । परन्तु ये सब बातें इस समय रहने दो । मेरी बीमारी कुछ अच्छी होने पर फिर आना । यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो तुम्हारे लिए ऐसा कोई मार्ग निकल आयगा जिससे तुम्हें मन की शान्ति प्राप्त हो जायगी ।
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तुम तो देखते ही हो कि मैं धन या वस्त्र की कोई भेंट स्वीकार नहीं करता । यहाँ कोई अन्य भेंट भी नहीं देनी पड़ती, इसलिए यहाँ इतने लोग आया करते हैं ! (सब हँसते हैं)
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(डाक्टर से) "यदि तुम बुरा मत मानो तो तुमसे एक बात कहूँ । - यह सब तो बहुत किया - रुपया, मान, लेक्चर; अब थोड़ासा मन ईश्वर पर भी लगाओ । और यहाँ कभी कभी आया करो । ईश्वर की बातें सुनकर उद्दीपन होगा ।"
कुछ देर बाद डाक्टर चलने के लिए उठे ।
(क्रमशः)

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