गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

*ममता तजके समता संग ले*

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*दादू साधु गुण गहै, औगुण तजै विकार ।*
*मानसरोवर हंस ज्यूं, छाड़ि नीर, गहि सार ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*सवैया-*
*करुणा१ जरणा२ सत शील दया,*
*प्रशुराम यूं राम रजा३ में रह्यो ।* 
*कहणी४ रहणी५ सरसौं६ परसौं७,*
*निश्चै दिन रात यूं राम कह्यो ॥*
*ममता तजके समता संग ले,*
*भ्रम छाड़ि सबै दृढ़ ज्ञान गह्यो ।* 
*लीन्ह महा मथ नाम निरम्मल,*
*राघो तज्यो कृत काज मह्यो८ ॥२८०॥*
परशुरामजी हरिवियोग व्यथा१, क्षमा२, सत्य, शीलस्वभाव, दया आदि से युक्त सदा रामजी की आज्ञा३ में रहते थे । 
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कथन४ और रहन-सहन५ के सच्चे थे । दूसरों७ को फटकार६ कर रात दिन राम कहने का निश्चय कराते थे और उसी प्रकार आप भी दिन रात राम-राम कहते थे । 
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आपने सर्व प्रकार की ममता का त्याग करके समता को धारण किया था तथा भ्रम को छोड़कर संशय, विपर्यय से रहित दृढ़ ज्ञान को ग्रहण किया था । 
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शास्त्र रूप दधि मन्थन कर उस का सार हरि का नाम रूप निर्मल मक्खन ही ग्रहण किया था । अन्य सब माया कृत सांसारिक कार्यों को छाछ८ के समान त्याग दिया था ॥२८०॥
(क्रमशः)

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