शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

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*दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार।*
*विषम व्याधि थै ऊबरै, काया कंचन सार॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार।
विषम व्याधि थै ऊबरै, काया कंचन सार॥
"राम-नाम निज औषधी'--औषधि तुम्हारे भीतर है। और तुम कहां- कहां खोजते फिर रहे हो? "निज औषधी'--वह तुम्हारी अपनी है, तुम्हारे पास है और तुम वैद्यों से पूछते फिर रहे हो। "राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार।'
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और एक ही औषधि से सारे विकार कट जाते हैं। और वह औषधि बड़ी सीधी और सरल है, कि प्रभु का स्मरण भर जाए।
"विषम व्याधि ये उबरै'--और जैसे ही तुम्हारे जीवन में प्रभु का स्मरण भरता है, तुम्हारी विषमता, असंतुलन कम होने लगता है। तुम सम होने लगते हो; समता को उपलब्ध होने लगते हो; संतुलन सध जाता है। जीवन में एक संगीत और संयम आ जाता है। 
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"विषम व्याधि ये ऊबरै, काया कंचन सार--' और उसी अवस्था में, जब कोई व्याधि नहीं रह जाती चित्त की, कोई बीमारी नहीं रह जाति चित्त की, तुम परम स्वस्थ होते हो। उसी क्षण में तुम्हारे भीतर छिपा हुआ जो स्वर्ण है, वह प्रगट होता है। तब तुम्हारी यह मिट्टी, मास-मज्जा की देह, तुम्हारी अपनी देह नहीं रह जाती। 
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"काया कंचन सार'--तब तुम एक स्वर्ण-देह को देख पाते हो। एक अविनाशी काया का अविर्भाव होता है। तब तुम अपने भीतर उस छिपे को देख पाते हो, जिसका कोई अंत नहीं है। जिसका कोई प्रारंभ नहीं है। "विषम व्याधि ये उबरै, काया कंचन सार।' 
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अब उस घड़ी की हम किस बात से तुलना करें ? किस बात से उपमा दें? जब व्यक्ति परम स्वास्थ्य को उपलब्ध होता है और स्वर्ण-काया उपलब्ध होती है, सार-सार बच रहता है, असार-असार छूट जाता है; शुद्ध चैतन्य का अविर्भाव होता है; एक महिमा-मंडित अमृत जीवन का जन्म होता है, उसे किस तरह हम समझाएं ? कौन सी उपमा दें ? 
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क्योंकि जो भी हम कहेंगे, वह छोटा पड़ता है। यह क्यों दादू को कहना पड़ रहा है ? क्योंकि इसके पहले उन्होंने जो उपमा दी है, उसकी वजह से। उपमा क्या दी है ? "राम-नाम निज औषधि'--राम-नाम को औषधि बताना पड़ा है। औषधि कहना राम- नाम को, बहुत छोटी बात कहनी है। पर क्या करो ? मजबूरी है। ...."काटै कोटि विकार।

विषम व्याधि ये उबरै, काया कंचन सार॥'
उसे स्वर्ण-काया कहा है, लेकिन क्या कहो ? सोने से क्या लेना-देना उसका ? तुम्हारे लिए सोना बहुत मूल्यवान है, इसलिए दादू को कहना पड़ता है, कि वह काया स्वर्ण की है। बड़ी बहुमूल्य है, लेकिन उसका कोई भी मूल्य नहीं हो सकता। सोना भी वहां मिट्टी है।
ओशो

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