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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४०१)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*४०१. साधु । भंगताल*
*काम क्रोध नहिं आवै मेरे,*
*तातैं गोविन्द पाया नेरे ॥टेक॥*
*भरम कर्म जाल सब दीन्हा,*
*रमता राम सबन में चीन्हा ॥१॥*
*दुविधा दुर्मति दूरि गँवाई,*
*राम रमत सांची मन आई ॥२॥*
*नीच ऊँच मध्यम को नांही,*
*देखूं राम सबन के मांही ॥३॥*
*दादू सांच सबन में सोई,*
*पैंड पकर जन निर्भय होई ॥४॥*
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काम क्रोध से रहित विशुद्ध हृदय से मैंने अपने हृदय में ही अति समीप उस ब्रह्म को देखा हैं । जब मेरा भ्रम और कर्मजन्य दुरित ज्ञानाग्नि में जल गये तब ही मैं उस राम को सबमें व्यापक रूप से रहने वाला हैं ऐसा जान सका । जब मेरे हृदय से अनेक तरह की दुविधा तथा दुर्मति निकल गई । तब ही मेरे हृदय में भगवान् राम को देखने की जिज्ञासा पैदा हुई ।
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इस समय तो उस भगवान् राम को जानकर में ऊंच-नीच अधम भाव ही नष्ट हो गया । क्योंकि मैं तो सब जगह सब में श्रीभगवान् राम को ही देखता हूँ तो फिर ऊँच नीच भाव कैसे रह सकते हैं । भक्त लोग भी सबके मूल कारण ब्रह्म को इसी प्रकार जानते हैं ।
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गीता में कहा है कि –
जिसके सब पाप नष्ट हो गये हैं और जिनके सब संशय ज्ञान के द्वारा निवृत्त हो गये हैं । जो संपूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं और जीते हुए मन से परमात्मा में निश्चल भाव से स्थित हैं । वे वेदवेत्ता पुरुष शान्त ब्रह्म को प्राप्त होते हैं ।
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काम, क्रोध से रहित तथा जीते हुए चित्त वाले परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरुष के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण हैं । जब साधक नित्य व्यापक सर्वगत अतिसूक्ष्म बाहर भीतर विराजमान परमात्मा को निजरूप से जान जाता हैं तब वह निष्पाप तथा रजोगुण और मृत्युरहित हो जाता है ।
(क्रमशः)

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