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*दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर कर, सब साधों की साखि ॥*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
वेद कुरान को बोध विलोकि१,
भरम्भ करम्म में नाहिं बह्यो२ है ।
भेषरु पक्ष रहे सब लखि३ गये सब झखि४,
निरखि निरंजन पंथ गह्यो है ॥
अवतार अपार भये केई बार सु,
देखि तिन्हों दिशि नांहि चह्यो है ।
हो५ रज्जब रत्त अनन्त अनूपम,
दादू न दूजे को दण्ड सह्यो है ॥९॥
वेद कुरान के ज्ञान को देखकर१ भ्रम मय कर्मो में प्रवृत्त२ नहीं हुये हैं ।
भेष की पक्षपात वाले सब देखते३ रह गये हैं तथा झींकते४ रहे है किंतु उनने तो उनको देखकर निरंजन ब्रह्म की प्राप्ति का ही साधन मार्ग पकड़ा है ।
अनेक समयों में अनन्त अवतार हुये हैं, उनकी और देखकर उन्हें भी नहीं चाहा है ।
हे५ सज्जनों ! दादूजी ने दूसरे का दण्ड सहन नहीं किया है, वे तो अनन्त अनुपम ब्रह्म में ही अनुरक्त रहे हैं ।
(क्रमशः)

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